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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/५२१

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मारिचिक-पारीच पर्याय-मारक, उत्पात् । जय हैजेका येशी प्रकोप होता ३ पनशाकविशेष, सरसा नामक साग। यह सफेद है, तवा : उसे · मारी कहते हैं। मारीमय उप। और लालके भेदसे दो प्रकारका होता है। संस्कृत- स्थित होनेसे नामकीर्तन, और शान्ति स्वस्त्ययन पर्याय-कन्धर, मार्पिक । गुण-मधुर, शीतल, विष्टम्मी, . करना आवश्यक है। जहां मरी रोग फैला हो,उस स्थान पित्तनाशक, गुरु, पातश्लेष्मकर, रक्तपित्त और विए. 'को छोड़ देना चाहिये । नाशक, अग्निवर्द्ध क, रक्तवर्ण, गुरु, मधुर, श्लेमकर । मारिचिक ( स०.लि०) मरिच-(पा ४।४।३) इति ढक् । (भावप्र०) मरिच द्वारा संस्कृत ।, . मारिषा ( स० स्त्री० ) मारिप टाप । दक्षको माता। मारित (स०.३० ).मार्यने नाश्यते भस्मोक्रियते इति मृ विष्णुपुराणमें इनकी उत्पत्तिका विषय इस प्रकार लिखा पिच फर्मणि ,क्त । १ हत, जो मार डाला गया हो। है,पुराकालमें घेदविदाम्बर कण्ड नामक एक मुनि नष्टीहत, जो नेट भ्रष्ट कर दिया गया हो। गोमती नदी किनारे तपस्या करते थे। इन्द्र तपस्यासे मसम्या मारितं स्वर्ण वनं वीर्यञ्च नाशयेत् । डर गये और तपस्या भंग करनेके लिये उन्होंने प्रसोचा ...... करोति रोगाम् मृत्युञ्च तद्वन्यात् यत्नतस्ततः ॥” । नामक अप्सराको भेजा। प्रम्लोचाने अनेक प्रकारके (भावप्रकाश) हावभाव द्वारा तपस्या भंग कर दो। वादमें कण्ड काई 'मारिन (स.लि.) घातक, हत्या करनेवाला । २ सदी तक प्रलोचाके साथ रहे। एक दिन उनका मोह मृत्युमुख-प्रधेशकारी, मृत्युके कराल गाल में पड़नेवाला ।। जाता रहा। वे प्रम्लोचा पर बहुत विगड़े और बोले, '२ मारिया-एक जाति। यह जाति अधिकतर मध्यप्रदेशके ! | पापिनि! तुम अभी मेरे सामनेसे दूर हो जा। तुमने अन्तर्गत घस्तार नामक फरदराज्यमें देखी जाती है। हावभाव दिखा कर मेरी तपस्या भंग को और देवराजका मारिया लोग कमरमें छुरी, फेधे पर कुठार तथा हाथमें कार्य सिद्ध किया। इसलिये सामनेसे हट जा, नहीं तो तौर-धनुप रखते हैं । धनुप हो उनका प्रधान हथियार भस्म कर दूंगा। मैं यहुन दिन तक तुम्हारे साथ रहा, है। ये तीर चलाने में बड़े सुदक्ष हैं। दोनों पैरसे धनुप. इसलिये तुम्हारा दोष भी नहीं दे सफता, मैं सयं दोषी को फेला दोनों हायसे गुण खींच कर ऐसे घेगसे | है। क्योंकि मैं अजितेन्द्रिय हूँ। तोर फेंकते हैं, कि तीर मृगेको शरीरको छैद कर बाहर इस प्रकार मुनिसे तिरस्कृता प्रम्लोचा उनके आश्रमसे निकल जाता है। निकल आकाश मार्गसे उड़ गई। उनके शरीरसे जो मारिष्यसनवारक सं० पु०) मारिजन्यं ध्यसनं तद्वारय- पसीना छूटा, वह एक झसे दूसरे वृक्ष पर, इस प्रकार तोति य-णिच भण् । राजर्षिविशेष, एक राजर्षिका नाम । कई वृक्षों पर गिरा। ऋपिसे आसराके गर्भ रहा था "कुमारपालश्चौलुक्यो राजर्षिः परमार्हतः। मृतस्थमोक्ता धर्मात्मा मारित्र्यसन धारकः । (हेम) गौर वही गर्भ रोमकूपसे स्वेदरूपमें निकला । जिस जिस मारिप (सं० पु०) मर्पति दोषानिति मृप्-भव, निपातनात वृक्ष पर वह पसीना गिरा था, वह गर्भवती हो गया। सिद्ध यया मा रिष्यन्तिहिनस्ति कश्चिदपीति रिप-क। पोछे वायुने उन सवोंको एक साथ मिला दियो। आगे १नाट्योक्किमें मान्य व्यक्ति, मा । २ नाटकका सूत्रधार ।। चल कर उस गर्भसे एक कन्या उत्पन्न हुई। यही कन्या "सप्रधार भवेद्भाव इति ये पारिपाश्चिकः । मारिपा कहलाई। मारिपाके गर्भसे दक्षप्रजापतिने जन्म - सत्रधारो मारिपेति हन्ते इत्यधर्मः समाः॥" ग्रहण किया। (विष्णुपु० २११५ २०) (साहित्यद० ६ परि०) २ देवमोदकी खोका नाम । (भागवत् १।१५ ३०) पुराणादिमें भी मारिप शब्दसे श्रेष्ठ व्यकि समझा मारो (सं० स्त्री०) मारि-(कृदिकारादिति ) पक्षे डीप । जाता है। १चएडी। २ जनक्षय, कोई ऐसा संक्रामक रोग जिसके "साहाय्य ते करिष्यामि मन्त्रशक्त्या महामते। . | कारण बहुत-से लोग एक साथ मरें, मरी रोग। ३ । -: मविता यदि संग्रामस्तव चेन्द्रा मारिष ।" माहेश्वरी शक्ति। " (देवीभाग०७२६।१२) मारोच (सं० पु०) रामायणके अनुसार एक TERI Vol, AVII. 117