सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/५५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मालद्वीप ( पलयदीप )-मालपहाड़िया अलावा इसके ६०७० हाथ लग्ये ताड़के पेड़ भी यहुता. यहांको भावहया उतनी अच्छी नहीं है। बुरियेरो यतसे होते हैं। यहां थोड़ा बहुत फल भी मिलता है। नामक पेटको बीमारी यहां के अधिकांश लोगोंको सताती मकई और रुई कहीं कहीं उत्पन्न होती है । यहां बहुत-। है। ज्यर होनेसे अकसर नहीं पचता है । ताप परिमाण से कौड़ीके स्तूप भी नजर आते हैं। फौड़ी ही द्वीप-७५ से ७ डिगरी तक बढ़ता है। यासियोंकी प्रचलित मुद्रा है। यहांका प्रधान खाद्य और मालन ( दि० स्रो०) मानी देखो। वाणिज्य द्रश्य मछली हो है। सभी द्वीपोंका उत्पन्न द्रध्य / मालपहाड़िया-सन्थाल परगनेके रामगढ़ पर्वतवासी एक मालिद्वोपमें और मालिद्वीपसे भारतवर्षके नाना स्थानों में जातिविशेष। जानितत्त्ववेत्ता इन लोगोंको द्राविड़ भेजा जाता है। लोना और सूखी मछली, नारियल, नारि- जातिका समझते हैं। यह जाति आज तक शिफारस . यलका तेल, विचित्र कारकार्ययुक्त चटाई, प्रवाल, कछुए- हो जीवन निर्वाह करती है। अत्यन्त प्राचीनकालसे को हड्डो और कोड़ो यहाँका प्रधान वाणिज्य है। घेदे- ही इस जातिके लोग 'भुम' प्रथाके अनुसार तो करते • शिक पणिक प्रतिवर्ष यहांसे धान, रेशम तम्याकू, नमक, है । उत्तरके मालपहाड़िया लोग दक्षिणवालोंको चावल, कपड़ा, धो, चीनके घरतन, लोहे और पीतलके मालेर' कहते और उन्हें सजाति समझते हैं। लेकिन बरतन ले जाते हैं। दक्षिणके मालपहाड़ी इस वातको स्वीकार नहीं करते।

द्वीपपुञ्ज एक सुलतान द्वारा शासित होता है । उनके ये लोग उत्तरवालोंको 'चेट' तथा अपनेको 'माल' या

• मरने पर उनके पुत्रपौत्रादि उत्तराधिकारी होते हैं । सुल- 'माई' कहते हैं। माल लोगोंके तीन विभाग है-कुमार• • तानके अधीन छः मन्त्री रहते हैं। प्रधान मन्त्रीको दुरि- पलि, दांगरपलि और मारपलि। ये लोग उत्तरवासी . मिन्द कहते हैं। वह मन्त्री और सेनापति दोनों हो लोगोंको 'सुमरपलि' कहते हैं। होता है । वैदेशिक वणिक राजधानीको छोड़ अन्यत्र । यह सब देख कर अनुमान किया जाता है, कि ये सब यादि खरीद नहीं सकते। भारतवर्ष की प्रचलित एक ही जातिसे उत्पन्न हुए हैं। पहले सम्प्रदायको + मुद्रा यहां व्यवहत होती है। यहां तक, कि एक रुपये लोगोंकी चाल-ढाल प्रायः एक-सी है। ये लोग टूटी ' में बारह हजार कौड़ी मिलती है। फटो यंगला वोलते हैं। इन लोगों में जो राजा होता है, ईस्पीसन् १७६६से अगरेजोंने सिंहलको अपने कब्जे | उसकी उपाधि "सिंह" होती है। मध्यम श्रेणीके धनी • कर लिया है। उस समयसे मालद्वोपके सुलतान इच्छा-1 लोग गृही काहलाते हैं। ये लोग अपनी जातिके गरीय पूर्वक प्रति वर्ष भगरेजोको कर दिया करते हैं। माल लोगोंको २० पैसे कर्ज दे कर सहायता करते है । कोई द्वीपको प्रचलित पद्धतिके अनुसार राजदूतको सुलतानके मी किसी प्रकारको सरकारी नौकरी नहीं करता। तीसरे दिये पतको रौप्यनिर्मित पत्र में रख कर शिर पर ढोना सम्प्रदायके लोगोंको गांयफे मांझी या मोइल काहते हैं। क्षेता है। पत्रका भावरण मसमल और सुरञ्जित रेशम चौथे सम्प्रदायके लोग अर्थात् आइति लोग फेवल का होता है। शिकार कर अपना पेट भरते हैं। . .. मालद्वीपमें तीन प्रकारको यर्णमाला देखने पाती। कोई कोई कहते हैं, कि मालपहाड़ी लोग आदिम है। यथा-व्य हो हाफुरा, अरयो और गाविलि-राना । पहाड़ी जातिसे बिलकुल पृधा है। पयोंकि, ये लोग शेरोक्त यानी गाविलि-टाना ही मालद्वीपवासियोको हिन्दू जातिके संसर्गमें मा. बहुत कुछ हिन्दुभावोंको मातृभाषा है। प्राचीन समाधिक्षेत्रमें हय हो हापुरा। अपना चुके है। योचा यांची पहाटी जातिक साधन भाषा देखी जाती है। शायद आदिम अधिवाली इसी लोगों का विवाद चला करता है। . भाशका व्यवहार करते होंगे। कहीं कहीं दक्षिण-सीमांत मालपहाड़िया फिर दो शाखाओं में घिमक है, माद- द्वोपने उक्त अक्षरम लिखो पुस्तक मिलती है। विद्यालय पहाड़िया और कुमार या कुमरमागिया । प्रकाशित में कुरान पढ़ाया जाता है। कुमरपलि जाति इस कुमरमागिया आतिस मिा नहीं Voi. ALIL, 123