१० पालपहाड़िया. . है। इन लोगोंकी एक किंवदन्ती है, कि किसी गायसे उसके हाथमें सिन्दूर देती हैं पर लड़कीके मांगमें इन लोगोंकी उत्पत्ति हुई थी। मानभूमके पंचकोटमें| सिन्दूर लेप देता है। लड़कीको गुलोसे यरके कपाल भी इस तरहका प्रयाद प्रचलित है । युकानन साहवने पर सिन्दूरके सात टोके लगा दिये जाते हैं। उस समय अनुमान किया है, कि पहले समयमें किसी राजाने शायद बड़े आनन्दके साथ वाजे घजने हैं और तरह तरहके एक मालपड़िहाको दीवान या फौजदार यनाया होगा उत्सव होते हैं। नर्तकियां नाचती है भीर गायिका उच्च और उसीसं पञ्चकोटवंशको सृष्टि हुई होगी। किन्तु इस- स्वरसे गाती हैं। सन्ध्या समय सभी घरके घर जाती है का कोई प्रमाण नहीं मिलता है। और समूची रात नाचे गानमें बिताती हैं। इन लोगों इन लोगोंमें पाल और यौवन दोनों ही तरहके बहु-विवाहको प्रथा है। स्त्रियां साधारणतः वांझ होने । विवाह प्रचलित हैं। प्रायः १० या ११ वर्षके पहले ही दूसरा विवाह कर सकती हैं। स्त्रीको यदि अनेक लड़कोका विवाह नहीं होता । कई जगह लड़की सयानी यह हो तो उससे बड़ी बहनों को छोड़ संभोसे उसका होनेके बाद भी व्याही जाती है। ऐसी हालतमें यदि वे स्वामी विवाह कर सकता है। विधवा-विवाहकी प्रथा पुरुषके प्रेममें फस जाय तो उतना दोष नहीं समझा। इन लोगोंमें जारी है। लेकिन देयर रहने पर और किसी जाता । इसका कारण यह है कि अगर किसी लड़कीके से विवाह नहीं हो सकता, विद्ययाको उमोसे विवाह विवाहके पहले गर्भ रह जाय, तो जिसके द्वारा गर्भ हो करना पड़ता है। अगर देवर शिंपनी' भौजाईसे वियाह गया है उसीको उस लड़की के साथ विवाह करना पड़ता करना न चाहे, तो विधवा भाने इच्छानुसार विवाह कर है। लड़कीका याप अपनी लड़कीका दहेज लेता है। : सकती है। कंचल नये स्वामीको २१२० देने पड़ते हैं। घटक लोग सम्बन्ध ठीक कर देते हैं। ५ से २५) रू० विधवा-पिया हमें सिन्दूर आदिसे काम नहीं लिया जाता, '. तकका ददेज होता है । लड़कोफे यापको जिस दिन सय | फेवल पर नया कपड़ा पहना कर विधयाको अपने घर १० चुका देना होता है उस दिन लड़कीके लिये कुछ ले जाता है। स्त्री अगर बदचलन निकले तो गायकी मदिरा और एक खड साड़ी देनी पड़ती है। लेकिन जय । पञ्चायतसे राय ले कर स्वामी उसे त्याग सकता है। तक विवाह नहीं होता तब तक रुपये लड़कीके मामा , अथवा स्त्री-पुरुष दोनोंको इच्छा हो तो वे पंधोंके सामने पास अमागत रहते हैं। विवाहमें मामाकी प्रधानता! सखुएफे पत्तेको फाड़ कर विवाह सम्बन्ध तोड़ सकते देख कर यहुतेरे अनुमान करते हैं, कि पहले माताके हो। हैं। अपने स्वामीके रहने वो अगर दूसरेसे फंस जाप, . सम्बन्धसे सभी परिचित होता था। लड़कीके दहेज तो उपपतिको उसके स्यामीका दिया दहेज देना देने के बाद घटक फिरसे लड़की के घर भेजा जाता है। पड़ता है। उस समय घटक के हाथ पर तीरफे माघातका चिह्न रहता . इन लोगों के देवताओं में सूर्य ही प्रधान है। प्रातः - और उसके चारों धोर पीला सूता लपेट दिग जाता और संध्याकाल ये सब सूर्यको उपासना करने है। विधाहक जितने दिन शेष रहते हैं उतनी ही गांठ है। किसी एक रविवारको घरका मालिक विशेषरूपसे उसमें दी जाती है। लड़की पक्षके लोग प्रतिदिन एक: सूर्यको पूजा करता है। इसके लिये उसे शुक्रयारको • गांउ खोलने है। वियाहक एक दिन पहले वर लडकीफे। संयम करना पता है और शनिश्चरको उपास रह कर घरके पास आ ठहरता है। लड़कोके पापको विवाहके फेयल दूध और गुह खाना होता है। सूर्योदयसे पहले दिन सोरे एक बड़ा भोज देना पड़ता है। शेमलकी' ही चायल सुपारी आदि पूनाकी सामग्री ले घरफे सामने हालसे घेर कर घरका आसन ठीक किया जाता है। श्रांगनमै घरका मालिक पहा होता है और सूर्योदय होते उस स्थानमे वर पूरब मुह बैठता है और लहकोके साथ, हो उच्च स्यरसे मन पढ़ने लगता है। ये लोग सूर्य को - गांउ जुलाप दिया जाता है। लड़को भी पीले रंगको साड़ो गोसाई कहते हैं। प्रार्थनाका तात्पर्य यह है कि सूर्य ., गहने रहती है । लटकीको सखियां यरको सजती हैं और भावी यिपदसे उन लोगोंको रक्षा करें। पे लोग बकरे.
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