पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/५६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४१२ पालपूना-मालव शकरके रसमें गीला गोलने हैं। फिर उममें चिरौंजी। "आदी मानवरागेन्द्रस्ततो माहारसंशितः पिस्ता भादि मिला कर धीमी आंच पर घोमें थोड़ा श्रीरागस्तस्य पश्चाद्वै वसन्तस्तदनन्तरम्। ' थोड़ा डाल कर निझा कर छान लेते हैं। यभी कमो हिछोटश्चाय काट एते रागाः प्रकीर्तिताः॥" पानीकी जगह घोलने समय इम दूध या दही भो (सङ्गीतदा०) मिलाते हैं। इस रागका स्वरग्राम- मालपूया (हिं० पु० ) मालपूआ देखो। . सागम ध नि सा:: मालयरो ( हिं० स्त्री०) एक प्रकारको ईख जो सूरतमें मतान्तरसेनि सा ऋगम घनि: होती है। मालभंडारी (दि० पु०) जहाज परका यह कर्मचारी जिस मतान्तरसे---सा ऋ ग म प ध नि सा :: फे अधिकारमें लदे हुए माल रहते हैं। (संगीतरत्नाकर) मालभक्षिका (सं० स्त्री०) मालं गाने ( मंगायां । पा ___ संगीत दामोदर में इसका रूप माला पहने, हरित ३३३।१०६ ) इति ज्युल । कोडाभेद, प्राचीनकालफे एक | वन गरी, कानों में कुडल धारण किये, संगीतमाला प्रकारफे खेलका नाम । नियोंके साथ बैठा हुआ लिया है। इसको धनधी, . माल भारिन् (सं० वि० ) मालां वित्तिभूणिनि ( इष्टके, मालधी, रामकोरी, सिंधुटा, पानावरी और भैरवी नाम- पोका मानाना चिानूनमारिए । पा ६.३१६५ ) इति पूर्व को छः रागिनियां हैं। कोई कोई इसे पाइव जातिका पदस्य हस्यः। मालाधारी, माला पहरनेवाला । । और कोई सम्पूर्ण जातिका राग मानते हैं। पाइप मालभारी । सं०ति०) मालभारित देखो। माननेवाले इसमें मध्यम स्वर घर्जित मानते हैं। यह मालय ( सं० पु०) मा शोभा तस्याः लयः आरपदं। १ । रातको गाया जाता है। ३ अध्यपति राजाके मालती चन्दनरक्ष। २ गराइफे एक पुतका नाम । ३ व्यापारियों गर्भजात पुत्रगण। का मुड । ४ मिसार-स्थानभेद, वह स्थान जहां पिया ४ उपोदको, एक प्रकारका साग । ५मालयदेश. से नायक मिलता है। घासी वा मालय देशमें उत्पन्न पुरुष । ६ सफेद लोध। . "जेलं वाटो भग्नदेवालयो दूतीय वनम् । (त्रि०) मालवदेशसम्बन्धी, मालवेका । भाग मशानश नयादोनों नटी तथा ॥" मालय-भारतवर्षकी एक प्राचीन हिन्दू जाति। इसका (साहित्यद० ३ परि०) अधिकार अयन्ती (पश्चिम मालवा ) और भाकर (पूर्वी' ५ पाकाष्ठ। ६ श्रीगंडचन्दन । (ति०) ७ मलय. मालया ) पर रहनेसे उन देशों का नाम मालव (मालया) सम्यन्धी, मलयका। हुआ। ऐसा अनुमान किया जाता है, कि मालयों का "तनुच्छटोत्तमाता तया भुयोत्तमाजया। अधिकार राजपूताने में जयपुर राज्यके दक्षिणी अंश, कोटा महारि गीतमानमानिन्धू नमानया ॥' (नलोदय २२३७) तथा झालावाड़ राज्यों पर रहा हो। वि० स० पूर्यको मालय (सं० पु०) मालः उससक्षेत्र मत्स्यव माल (फेशाद- 1 ३री सदीके आस पासको लिपिकं कितने तरिके सिपके योऽन्यतरस्यापा १.६) इत्यत 'अन्येभ्योऽपि दृश्यन्ते । जयपुर राज्यके उणियाराफ निकट मानोन नगर (का. काशिकोयनेच प्रत्ययः । १ अवन्तिदेश। टक मगर)-फे संदहरसे मिले हैं जिन पर 'मालवानां अप' "मन्ना यना मद्गुरका गन्तगिरिदिगिरी। लिया है। इस प्रकार और भी कितने सिप पाये महारारा प्रहामायाप मामा " गये हैं। ये सब मिपके मालवगण या मादय जातिको (मास्यपु०२४४ म.) } विजय स्मारक हैं। पर ऐमे छोटे मियत पर उन. २ रागविशेर, छः प्रकार के रागनिमें प्रथम राग। फे नाम और विसदमाशमात्र हो भागमे उन नामों पाईकोई इसे भैरव राग भी कहा है। फा स्पष्टीकरण नहीं हो सकता। कुछ लोगों ने उनके नाम