पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/६०६

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पाहिष्य " क्षण भ्यागमृतोः प्रयम यासरे । (क) निरादो मार्गय सूत्रे दाशं नौकर्मजीविनम् । जातः पुत्रो महादस्युपत्नीय धनुर्द्धरः... कैवर्तमिति य माहुरावित नियासिनः ॥" चकार.यागतीतच, पात्रियेणाऽपि वारितः। तेन जात्या स पुषश्च वागतीतः प्रकीर्तितः॥ निपादसे मार्गय या दाश जाति पैदा हुई है। यह (प्रमखण्ड १०।११७:११5) जाति नायें चलानेवाली जाति है। इसे आर्यावर्त्तवासी ऋतुके प्रथम दिन वैश्याके गर्भ में क्षत्रियका वीर्यवपन वर्ग कहते है। फरनेसे जो बालक उत्पन्न हुआ, यह महा डाकू, बलवान् (ख) "स्वर्ण काराय कैवत कुवेरिपयां यभव ह।" और धनुर्धारी निकला । क्षक्षियके मना करने पर भी उस ! (परशुरामीय० जातिमा) पालकने वागतोत या अनिर्वचनीय फौका सम्पादन अर्थात् स्वर्णकार (सोनार )-से फुवेरनी या कोयरी किया था, इसलिये यह यागतीत याव गदी नामसे कन्यासे कैवर्त उत्पन्न हुए हैं। मशहूर है। फिर शिनसधर्मशास्त्र नामक एक अप्राचीन प्रन्धमें जो हो, हम तोन प्रकारके कैवर्त देखते हैं। लिपा है- (१) क्षत्रिय और वैश्यजात कैवत्त, शंस्यरक्षा उप. "नृपानातोs ये श्यायो गृह्यायां विधिना सुतः। जीविका अवलम्बन कर सम्मयतः ये ही इस समय येभ्यवृत्या तु जीवेत क्षत्रधर्म न चाचरेत् ॥" हालिक कैवर्त नामसे विख्यात है। इस जाति और क्षत्रियके औरस और पाणिप्रहण की हुई वैश्यासे जो! मादिष्यको उत्पत्ति भी क्षत्रिय-वैश्यासे होगेस और समय पुत्र उत्पन्न होता है, वह सूत है। उन्हें वैश्यगृत्ति समय पर दक्षिण बङ्गाल के अनूप प्रदेश में इस जातिका द्वारा अपनी जोविका निर्वाह करना चाहिये। विस्तार होनेसे विशुद्ध माहियों के साथ सम्बन्ध होना ___ जो हो, क्षत्रियसे और वेश्याके गर्भसे जन्म लेनेसे हो कुछ असम्भव नही। मेदिनीपुर जिलेम इस जातिका सभी माहिय होंगे, ऐसा नहीं है। माहिन्यके सिया! पहुव । MH बहुत दिनोंसे राजत्व चला. भाता है और इसी राज- धीयर या फेयर्स, सुत और वागदी ये भी क्षत्रिय चैश्या ! कीय प्रभायसे ये राजपूतोंसे सम्बन्ध करने में सफलीभूत फुल्लूफभट्टने लिखा है-"नृत्यगीरानझवजीवनं शस्य- (२) मनुकथित मार्गय या दाश भी आर्यावर्तमें rani गीत गान. शmAH REना । कैवर्त नामसे प्रसिद्ध है। किन्तु बङ्गालो मार्गय या और शस्य (फसल) की रक्षा आदि मादियकी पत्ति है। मालो नामसे परिचित हैं। ये आज भी यहां नावें चला किन्तु किसी प्राचीन स्मृतिपुराणमें या लेखमें माहिष्यों- फर अपनी जीविका चलाते हैं।. . . की शस्यरक्षावृत्ति निर्दिष्ट नहीं है। (३) वेदोक्त मादि फेयत या धीयर स समय आश्वलायन और ओशनस धर्मशास्त्रोक सुत मनुक्त जाली केयत्त नामसे विण्यात हैं। इनकी आदि उत्पत्ति सूतसे मिन्न हैं। आश्वलायनने जिसको धोयर फहा ठीक न कर सकने पर सम्भवतः गाज फलफे जातिमाला. 'है, उसीको प्रहाचैवर्तपुराणकारने कैवर्त नामसे पुकारा कार परशुरामने इनको फुयेरिणो या कोयरी रमणोके गर्म- है। "यत्ता दाराधीयरी" इस फोपवचन और ग्राम- से उत्पन्न पतलाया है। ये दो अन्त्यज होने के कारण नाना चैयर्न के 'क्षत्रयोयेण' इत्यादि सम्पूर्ण पचनानुसार धोवर संहिता अन्त्यज कदे गये हैं। फेयर देखो। भौर फेरी एक पर्याय शब्द और एक आतिके कहे गये माहिपेय सुत या निम्नश्रेणोफे माहियोंके याम है। फिर यह भी कहना आवश्यक है, कि फेवर्स जाति प्रतिप्रदादि लेना मना किया गया है, यह मायालायनको एक सरहको नहीं है। इस समय जैसे हालिक और उकिसे · स्पष्ट है। यहां दालिक कैयोंको इसी 'जोलिक ये दो प्रकारके फेयरी देसे जाते. है, से पहले भी का सदके पर थे। जैसे- . . . । ___ • Risley's Tribes and Castes of Bengal,