पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/६२

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पहत्कय पहचत्त २कहार । ३ जुलाहीका एक गूरा। यह मांजके मागे । अर्थात् सप्टिकचा तथा पुराणादि शास्त्र के हिom गढ़ा रहता है और इसमें भांजको मोरी फैमा रहती है || प्रमा, कार्यग्रास या ईश्वर हैं। भूलोक, गुलाक, म... महत्कथ (सं० वि० ) १जो मोठी मोठी बातें करके य. रोझलोक, चन्द्रलोक, सर्यलोक, प्रहलोक, नक्षत्रलोक.. आदमियोंको ममन्न करता हो, ग्युनामदी । २ जिसको । ग्राह्मलोक मादि सभी लोकोंके सभी पदार्य इन महा। बोली में बढ़प्पन है। पुराण के अधीन है। यह महत्तस्य नामक ध्यापक पनि . महत्व (सं० वि०) विम्मोणं क्षेत्रयिशिष्ट । (लो०) हमारे हानमें, तुम्हारे सानमें, उसके शानमें, पालो । २ पिपुलशेव । मनुष्योंके शानमें, सूर्यलोकके मनुष्योंके शान में, पशु भीर महत्तत्य ( म० ० ) महथ तत् नत्यञ्चेति । १ पक्षीफ शानमें मौजूद है। हम लोग जिस प्रकार इस सांख्यान नयिंगति तत्त्वके अन्तर्गत दिनीय तत्त्य, . हाथ पैरपाले शरीरके ऊपर मेरा' यह अभिमानाने सांस्यके अनुसार चौबीस तत्वोमंसे दूसरा तस्य, युद्धि हुए है, उसी प्रकार हिरण्यगर्म या वर भी सपूर्ण . तस्या महत्तत्यके ऊपर मैं और मेरा यह अभिमान मिझेप किये प्रतिका प्रथम पिकास माहत्तत्य है। दर्शनशास्त्रमें हुए हैं। जिस प्रकार हम लोगोंको अपने अपने शरीर पर . इसफा घिषय जो लिखा है यह यों है-इम महन् राष्टिफे , गधिकार है, उसी प्रकार समस्त महत्तत्यफे ऊपर दिल प्रारम्भमें असंमारो और भरोरो मारमा सान्निध्यः गर्भका अधिकार है। हम लोग अपने अपने हाथ पांव . यशतः प्रतिफे मध्य प्रथम प्रस्फुरण होता है । रजोगुण को जिघर बाद दिला डुला सकते हैं उसी प्रकार . से सृष्टि, सरवगुणसे पालन योर तमोगुणसे संहार हुमा . हिरण्यगर्भ भी अपने इच्छानुसार समस्त अन्तःकरण. करता है इससे यह समझा गया, फि पहले सभी गुणों को फैलाते है। के साम्यम से रजोगुणनं सत्यगुणको प्रकाश किया था। कपिलने यद्यपि इसका सयिस्तार वर्णन नहीं किया . इसी कारण सरयगुण मबसे पहले महत्तत्व माफारमें । दे, तथापि अन्यान्य अन्यों में इसका विस्ता प्रादुर्मून हुमा था। महसत्यको जाननेके लिपे । यियरण देखा जाता है। कपिलने फेवल "महादा पर्तमान प्रापिसमूहको घुद्धिर्ष यो स्थान पर यिवार मात्र कार्य सन्मनः" (ल्पस. १६७१) इस खूबमें मद- . करना होगा। इससे. मालूम होगा, कि सभी विशेष सत्य गन्द समझाया है। प्रकृतिका जो भाद्य कार्य है। विशेष युविका विकागस्पान अन्तःकरण है। फिर यह प्रथम विकाश या प्रथम परिणाम है उसीको महत्तत्व , भी देखा जायगा, कि प्रत्येक मन्तःकरण हरिदर मूर्तिको कहते हैं। यही मन अर्थात् मननतिक अन्तारण : नरद विधिमें मौजूद है। उनमें से एक मूर्ति या परिणाम है। यहां पर मनन शादया मर्प इ निश्मय! ता का माम मनन' और 'अध्ययसाय तथा दूसरो मूर्तिका! करण या युनिफ शिस शर्म निश्वयाप यति उत्पन्न । गा'मभिमान' मोर 'म है। मैं, में , यस्नु, पस्तु होती है, उमो अंशका माम महान् और महान है। है. मेरा, मेरे करने योग्य रियादि प्रकारके निश्चया गतिमादम भपं परिणामका बोध होता है. सो.. रमा विकागको अध्ययसाप गौर शानगसि. पद लिये यह पत्ति है। यह माममक्ति मदमातत्यरूपमें जीपको मन्त । से जानने के लिये क्षण क्षणमें उत्पन्न होनेवाली रारमा हमेशा मौजद रहती है। मानमनिपं. सम्ह विपासना लिन गुद्धिको मयगाह प्रण IS . का नाम हो महान है। महान भार पूर्णमान दोनों पर पिसका परित्याग कर निरयनिसन मेगन विक है। पूर्णमानानि हो माध्योग मदतस्य र द्धितरप! दिदी महास्य ऐमा ममममा होगा। पाने .... पदसाता है। फेयन्न विधामा पुल मोर उभी न | भाप . . जो महान् पर इस महान गुशिता में पूर्णपणे। महनिरं, प्रा रिकाममें मांग मामय नामक पुधि प्रतिनिम्मित होति यही महापुरुष सांस्य र ! विदामागी अनुरसनामिया अन्य पहाडी भारतमा