पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/६७

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पहम्मद एक शाखा) जातिने फाफी धन कमाया और उसकी , च्छेदन करनेके लिये उन्होंने इधर उधर भ्रमण भी तूतो तमाम बोलने लगो। मुसलमान कुलरवि महम्मद किया। उन लोगोंके साथ युदयिमहादिमें लिप्त रहने के .का उदय इसी जातिफे यानु हासेनके यशमें मुआ था।' कारण इनका यौवनकाल युरयासमासे प्रेरित हो उठा महम्मदंके पिता अयदुला अपने धनी मानी समाजमें था। इनको यह उद्दाम वीरस्यममा इनफे भविष्य धर्मः अप्रगण्य थे। जनसाधारण उन्हें अरव जातिके प्रसिद्ध झामको पुष्ट करती थी। मादिपुरुर इस्माइलका घर जान कर सूब सत्कार युवाकाल इस प्रकार रणरइसे रञ्जित होने पर भी फरते थे । ये कभी कभी एकान्तमें ये दिनाई देते थे। इनका . कोराइसो'ने उत्तरोत्तर अर्थ पृद्धि कर पायपत्ती! हृदय निष्ठुरताके उपादानभूत मूर्तिपूजा तथा पृथा कर्मः राज्यों में अपनो धाक जमा ली। फिर शिक्षित काएडके मासस्यरसे खिन्न हो जाता था। फिर भी इन्हें ' तथा उन्नत समाजके संसर्गसे उन सवों की पितृपितामह-अनुष्ठित क्रियाकलापमै लोन होना ही पता युद्धि भी विशेष परिमार्जित हो गई। मरवये प्राचीन ' था। एक दिन कावा मन्दिर निर्माणकालमें रह भी एवम् प्रसिद्ध उपासना-भवन 'काया' याहुत दिनों तक प्रसिद्ध कृष्ण प्रस्तर उठाना पड़ा था। यही सब देश सुन हासेमय शके अधीन सुरक्षित रहा। महम्मदके पूर्व फर प्राचीन धर्म में इनको अविश्वास होने लगा। मतपय पुरपामो ने इस मन्दिरका याजकताका-कार्य पूर्ण प्रभाया। इस प्रचलित धर्मको सुधारनेके लिये ये चिन्तित हो से परिचालित किया था। महम्मदके पिता अबदुल्ला पुत्र-जन्मके पहले हो पर- वासरा प्रधानकालमें एक दिन यहाँके नेटोरियामा लोकयासी हो चुके थे, इस कारण पुवमुख-दर्शनकी जो। ध्यक्ष शोदियाफे साथ महम्मदका यातालाप मा था। उनको उत्सष्ट आकाक्षा थी, सो पूरी न होने पाई। इस पर धर्मयाजकने इनकी धर्माभिव्यषित और यामया- घर महम्मदकी माता अमीना भी पति-यियोगसे दो: भाससे यह भलो तरह समझ लिया, कि यागे चल कर यह घर्ष वाद हो परलोक सिधारी। अब इस मातृ-पितृहीन युवक एक महापुरुष होगा। तदनुसार उम पद्धने युयश चालक महम्मदका पोपण भार इनफे वृद्ध पितामह काश' के अभिभावकमे भेट फी और पाहा, "महामाय ! पक के पुरोहितफे हाथ सौंपा गया।पोछे पुरोहितके मरने ममयमे यह यालक श्रेष्ठ पुरुष होगा, मनपय यत्नफे साथ पर इनके चचा आयुतालिय भावम्ल इनकी देशमाल | आप यहदियोंके हायसे इसे पवाये। करने लगे। वाल्यकालमें महम्मय में भी चराते और मय पचीस वर्षको अवस्थामें महम्मद अपने अभिभावक देश जा कर यनजामुन तोड़ लाते थे। इसके सिवाय माजानुसार प्रविजा नाम्नी एक धनी विधया रमणी. इनके थाल्यकालका और कुछ दाल मालूम नहीं होता। इस घर गये और उसका विषयकर्म जानने न्दंगे। पोटेस समय इन्होंने दीन-दुखियोंके साथ समण कर दारिद्रा रमणीकी ऐश्वर्य द्धिके लिये इन्होंने वाणिव्यापारमें काठका अच्छा अनुमघ किया था। ध्यान दिया। इस कारण उन्हें देश-विदेशोंमें भी भ्रमण परयसीकालमें इन्हें अपने चचाके साथ सिरिया, करना पड़ा था। इमाकी लीलामृमि पालेम्तिन तथा दमस्कस, पोगदाद तथा दोसरा मादि देशों में याणिज्य- समृद्धशाली प्राचीन सिरिया नगर भी उन्होंने सो भ्रमण- प्पयसायके लिये कई वार जाना पड़ा था। युयाकाल. कालमें दया। यहां पूर्यतन धर्मयाजकोंकी प्रतिमति. में रहे युद्ध करनेकी भी इच्छा दुई थी। उस समय ' हिजरको पायत्यगुदा और मासागर आदि नेमगिक व्यापारियों तथा तीर्थयात्रियों को दम्युसम्प्रदाय मुरी तरह चिसममूहको देश में इस प्रकार भायमें पिमोर हो गये सताता था । इसलिये अभिभायक घनाके आहा मानो किसो ऐसी शपिनसे मनुप्राणित होने पर हदय नुसार २० वर्षको उमरमें ये दलबल सहित उसका मालोस्ति ६ उटा हो । मा-मयताकी मलौकिक दमन करनेको चल पर। इस सम्प्रदायका मलो.. लीला तया सिरिया. धर्मपिम्नारका स्मरण कर