पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/६९४

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मिस्र - सदासे प्रतिमन्दिना चली आती है। कौन कह सकता इनका सांकेतिक चिह्न था । इनकी पूजा नरवलि है, कि किसको जय हुई और किसको पराजय। चढ़ाई जाती थी। उत्तर मिस्रको अधिटानी उयाती दसरे, मनुष्यों की भीतरी धर्मबुद्धिसे प्रवृत्तिका सदासे (Vati ) फरोव करीव सुयेनको ही गनुरूप थो। उरि. युद्ध होता रहता है । विवेक और अविद्याका घोर यास ( Uricas ) सर्प इनका साहतिक नाम था। संघर्ष उपस्थित है। मनुष्य अविद्याका विनाश कर ___ ओनुरिस या अनंहेर (ouris or Anher ) अमरत्य पाना चाहता है। किन्तु भोगात्मिका अविद्या विनिस नगरके प्राचीन देवता थे। फा नाम है क्या ? संसार-प्रवाहमें जरा भी चैन नहीं। इमहोलेप ( Unliotep) आप्त और सेवकका पुत्र जय-पराजयका निर्णय कौन कर सकता ? मिस्रदेशमें जिन था और मेमफिस नगरको त्रिमूर्ति भन्यतम था। ये पशुओं की पूजा की जाती थी, उनमें तीन प्रधान हैं। पहला थथकी तरह विज्ञानके अधिष्ठाता है। बैल आपिस (Apis) है। यह फ्या बैलरूपी धर्म है ? पहले हो,कहा गया है, कि मिस्र के देवता या देवियां दुसरा यैल नेविस (Inevis) है। तीसरा मेण्डे कोई भी अकेली नहीं रहती थी। मन्दिर में सकुटुम्य सियान ककरा ( Mendesian Gont) | मोसिरिसको वास करते थे। उपयुक्त देवोंके नाना जगहोंमें मन्दिर पूजाफे साथ बैल और वकरको पूजा होती थी। नील थे। मन्दिरमें सुशिक्षित पुरोहित रहते थे । दर्शन और नदको अधिष्ठात्री देवी हापी ( IHapi ) नामसे पूजित धर्मशास्त्रालोचनाके लिये मन्दिरके समोर मठ और पाठा- होती थी। कभी कभी लोग पैल और नोलनदको गार आदि रहते थे। पुरोदित यहां ही विद्या पढ़ाते गोसिरिसके अवतार कहा करते थे। पयोंकि धर्मके थे। देश-विदेशसे छात्र आ कर इम पाठागारसे लाभ प्रतिनिधिस्वरूप उन्होंने नरहितधतका उद्यापन किया उठाते थे। था । कृषिके प्रधान अवलम्यन परूपी धर्म जनसाधारण अपने अपने घर देवदेषियों की पूजा है और जननीकी तरह हितकारिणी नील नदी है ।। करते थे। नगरकी अधिष्ठात्री देयोको पूजा बड़े समा. उनके परोपकारिता-धर्मजोयनका दृष्टान्त अन्यत्र | रोहसे होती थी। राजा भी इस उत्सयमें सम्मिलित सम्भव नहीं हो सकता। यूपरूपी आपिस स्थान भेदसे होते थे। समाधिक्षेत्र में पूजा आदि प्रकाश रूपसे होती सारापिस ( Sarapis ) नामसे पूजित होते थे । प्रस्तर- थी। प्रायः सभी जगह मैतपुराधिष्ठाता ओसिरिस. मण्डित समाध्रिक्षेत्र या फनिस्तानमें पापिस वृप या की पूजा होती थी। पूजामें पशु-बलि और उद्भिद जाति- लको ठठरियां मिली हैं। की भी बलि दी जाती थी। देवताओको प्रकाश्यरूपसे मोसिरिस समाजको एक और प्रधान देवो इटहर मद्य चढ़ाया जाता था। धूप आदि गन्धोंसे मन्दिर (Ilathar)-थों । यदुत लोग इनको दूसरे आइसिस कहते | गूज दिया जाता था। मनेधो (Munetho ) का कहना हैं। मोसिरिसने मनुष्य रूपों मनुष्योंका जैसा हितसाधन है, कि मिनमें बहुत दिनों तक नरबलि देनेका प्रचार किया था, इन्होंने स्त्री रूपमें भी उसी तरदका मनुष्य था], पीछे १८वें पंशके प्रथम राजा अमोमिसने इस हितसाधन किया है। पोछेके समयमें मिस्रमें ,सर्यत | पीभत्स प्रथाको बन्द किया। इसके बदले में मोमको वनी हो इनको पूजा होतो माई है। किसी मूर्तिको पलि दी जाने लगो। प्रति वर्ष नोलनद- सेवेक (Selck)का कुम्भोर सा मुद था। ये टाइफन की पूजा में एक कुमारी नदीगर्ममे फेक दी जाती थी। की ही तरह थे। मिस्र में इनकी पूजा भी प्रचलित थी। परन्तु आज मोमको फुमारी धना कर जलमें प्रति वर्ष फेकी सुवेन ( suben , दक्षिण मिस्रकी एक देवी है । कभी जाती है। जलाशयको प्रतिष्ठाके समय भी नरपलिको फभी लूसिना ( Lucinn ) और लिथिया (Eileth आवश्यकता होती थी। gia) नामसे पुकारो जाती थी। ये दक्षिण मिम्रको प्रायोन मिसयामियों का विश्वास था कि मनुष्य मधिष्टाम्रो देशों और मातृस्वरूपिणी थों। गृध्र पक्षी! यपने किये कोका फल भोग के लिये जन्मपदण करते