पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/७३५

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मीमांसा - पाते हैं। माधवाचार्यने नाना स्थानमे उनको “शुरु" | केवल कई सूतोंका प्रणयन किया गया है। ये प्रकरण कह कर उल्लेख किया है। उन्होंने "वृहती" नामक ग्रन्थ | वर्तमान स्मात्तों अवलम्बन है। सविस्तार मीमांसाशारत्रको आलोचना की थी। उन्होंने | नीचे वर्णानुक्रमसे मीमांसकोंके और उनके रचे हुए कई जगहों में कुमारिलके विपरीत मतको प्रकाश किया है। मन्थोंके नाम दिये गये हैं- उनके और भट्टकुमारिलके मत में यह एक विशेषत्व है, कि । अन्धकार अन्यके नाम कुमारिलके मंतसे वेदाध्ययन विधेय है और प्रभाकरके। अनन्तदेव फलसाडूर्य षण्डन, मतसे अध्यापना विधेय है। चलावल-क्षेपपरिहार .. इसके बाद पार्थसारथि-मिश्रका नाम उल्लेखनीय अनन्तदेव देवस्वरूपविचार है। उन्होंने फुमारिलके मतको समझाने के लिये 'शास्त्र. ( आपदेवका पुल) दीपिका' और 'न्यायरत्नमाला' का प्रचार किया। उन्होंने | अनन्तमिश्र न्यायप्रदीप कई स्थानों में प्रभाकरके मतको दोपायह बताया है। अमन्ताचार्य वेदार्थचन्द्र प्रतिभाविलास पार्थसारथि मिश्रके अनुवत्ती विख्यात कर्नाटक ब्राह्मण | अप्पय्य दीक्षित उपक्रमपराक्रम, नयमयुख सोमनाथका नाम भी उल्लेखयोग्य है। उन्होंने 'मयूख. ! (१५वीं शताब्दो रङ्गराजा { मालिका विधि रसा- माला' नामक शानदीपिकाकी एक उत्तम टीका प्रणयन ध्वरीन्द्रका पुत्र) । यन. अधिकरणमाला आपदेव (अनन्तदेवका पुत्र) अधिकरणचन्द्रिका, ___ प्रभाकरके याद जो सव मीमांसक आविर्भूत हुए हैं, मीमांसान्याय प्रकाशिका उनमें माधवाचार्यका नाम प्रथम कहा जा सकता है। यादकौतुहल, आपदेवीय शावरभाष्य और कुमारिलके मीमांसावातिकमें मीमांसा इन्द्रपति मीमांसारपल्बल का जो जटिल अंश है, उस जटिल अंशको छोड़ करविन्द स्वामी मीमांसासून भाज्य साधारणको सुविधाके लिये माधवाचार्यने "जैमिनीय | कविन्द्राचार्य मीमांसासर्वस्त्र न्यायमाला-विस्तार" प्रकाशित किया । इस अन्धमें कुमारिलभट्ट श्लोकवार्तिक, नन्त- मोमांमादर्शनके प्रतिपाद्य सभी विषय स्थूलभावसे यात्तिक, दुपटीका भालोनित हुए है। कृष्णदेव तन्त्रचूड़ामणि . पार्थसारथि मिश्रके बाद हम मोमांसावात्तिके | कुष्णनाथ भावकल्पलता-टीका प्रसिद्ध टोकाकार वएडदेवका नाम पाते हैं। उन्होंने खण्डदेव मीमांसाफ़ौस्तुभ, आल्या स्थरचित "मीमांसाकौस्तुभ में सविस्तार मीमांसाशास्त्र- तार्थनिरूपण को आलोचना की है। उन्होंने माधवाचार्य और जथं । मीमांसातत्त्वचन्द्रिका, सारयिका भो मत वीच-योचमें उल्लेख किया है। मीमांसाविधिभूषण सिवा इसके जैमिनिके मीमांसा-दर्शनको बहुत गोविन्दभट्ट मोमांसासङ्कल्पकौमुदी टीकायें मिलती हैं। उनमें राघवामन्दको न्यायावली अधिकरणमाला दोधिति उल्लेखयोग्य है। इस प्रन्यमें प्रत्येक मीमांसा. गोयिन्दमहामहोपाध्याय अधिकरणमाला सूत्रके प्रत्येक शब्दको पाख्या और प्रत्येक सूत्रार्थ | चन्द्रशेखर धर्मविवेक विगद भावसे समझाया गया है। जिन्दक ( काश्मीर कवि) मुसलमानों के अभ्युदयके बाद मीमांसाके बहुत प्रकरण- मलके समसामयिक अन्य रचित हुए हैं। सूत्रमाप्यका परिचय देने के लिये उन जीवदेव ( आपदेवका पुत्र) भभास्कर सोको रचना नहीं हुई हैं। उनमें स्मृतिमें लगाने के लिये | जैमिनि मीमांसासून गोपालमट्ट