पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/७९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मुकुन्द दास-मुकुन्द राम चक्रवर्ती 'इन भावुकवरका नाम मुकुन्ददत्त था। श्रीखण्डवासी मुकुन्द भट्टाचार्य-पद्यावतीधृत एक कवि। .. नारायणदत्तके मुकुन्द तथा नरहरि नामके दो पुत्र थे। मुकुन्दराज-एक प्रसिद्ध वैदान्तिक, ' श्रेष्ठ पण्डित राम नरहरि शब्द देखा । नरहरिनपद्वीपमें रहते थे तथा नाथके शिष्य। इन्होंने अद्वैत शानसर्वस्व. अशावक श्रीमहाप्रभुके निकट भाईको वैषयिकब न्धनसे मुक्त करने, गीताभाष्य, आत्मयोधपञ्चोकरण, परमामृत, विवेकसार- के लिये प्रार्थना करते थे। मुकुन्द एक बार अपने भाईदो सिंधु, विवेकसिंधु घा' वेदान्तार्थविवेचन महाभाष्य' देखनेके लिये नवद्वीप आये और गौरांग महाप्रभुकी नामक कई पुस्तकों की रचना की है। मुकुन्द मुनिके भक्तिन्नदोमें गोता मारने लगे। घे भो भकंगणों के साथ नामसे भी ये परिचित है। मिल कर नवद्वीप होमें रहने लगे। इन्हों मुकु दके पुत्र, मुकन्द राम---आनन्द कलिकाके रचयिता। प्रसिद्ध रघुनन्दन हुर। रघुनन्दन देखो। मुकुन्द राम चक्रवत्तो-यंगला भाषाके चण्डिकाव्यं. मुकुन्द दास-१ गौतमीय न्यायसूत्रके टीकाकार । २ भावार्थ प्रणेता। जगतामें ये कविकण उपाधिसे परिचित है। दीपिका नामकी भागवत गीता टीकाके रचयिता । . । कविकणं देखो। मकुन्द दीक्षितद्विवेदिन-एक विख्यात् वैदिक पण्डित। कविकडण सदमें मुकुन्द रामका आत्मपरिचय इनके पुत्र युवराजने ऋग्वेदकाव्य बनाया था। दिया गया है। दामुन्या में उनके सात पुरुषाओं का मुकुन्ददेव (सं० पु०) उड़िप्पाके गजपतियशोय अन्तिम राना। चासत्धान था । उस समय ' अधाम्मिक राजा १५६७ ई०में वङ्गालके मुसलमान राजाके सेनापति काला हुसेन कुली खां वंगालका शासनकर्ता था। उसके पहाड़ने इनको पराजित कर पुरीके पवित्र मन्दिरको ध्वंस अनुग्रह तथा प्रशाओं के पापके फलस्वरूप महमूद कर डाला था। गङ्गा-सरस्वती सङ्गमके उत्तर त्रिवेणी- सरीफ डिहीदार हुए थे। विहीदारके अत्याचारसे स्नान-धाट इन्होंके द्वारा बनाया गया है। उत्कल देखो। उत्कंठित हो कर तथा अपने स्वामी गोपीनाथ नंदीसे मुकुन्दद्वार-राजपूतानेके अन्तंगत कोटा-प्रदेशका एक नगर) मालगुजारोकी यावत सरकारसे वंदो हुये, देख घे गंम्मीर तथा पहाड़ो मार्ग । यह अक्षा० २४४८५०" उत्तर तथा सांके परामर्शानुसार चण्डीगढ़के श्रीमन्त खाकी सहाँ- देशा० ७६ ४५० पू० चम्बल तथा कोली सिन्धुके । यतासे स्त्री, शिशुपुव तथा भाई रमानन्दको साथ ले संगम पर अवस्थित है। कोटाके राजा महाराव माधव । आरडामें आकर रहने लगे। . . . . . सिंहके ज्येष्ठ पुल मुकुन्द सिंहके नामानुसार उक्त स्थान दामुन्या में उन्होंने पहले शिवकीर्शन नामक एक छंद्र 'मुकुन्द द्वारके नामसे प्रसिद्ध है। 'मुकुन्द सिंहने अनेक । फयिताको रचना की थी। दामुन्यासे जब भाग रहे थे, द्वार तथा अट्टालिकामों का निर्माण किया था। तब मार्गमें चण्डी देवीके आदेशानुसार ये पुस्तक लिखने में मुकुन्द परिवाजक-विज्ञान-नोकाप्रणेता। प्रवृत्त हुए । आरडामें उक्त चण्डो काम्यकी समाप्ति हुई। मकुन्दपुर-तिरहुत जिलेके अन्तर्गत एक प्राचीन नगर। । इस प्रन्यके शेषमें कविने लिखा है, 'शाके रसरसवेद मुकुन्द मिय-एक धर्माचार्य, काशीखंडटोकाकृत रामा- शशांक ग णन!' अर्थात् शाके १४६६में चण्डींगीत समाप्त 'नन्दके पिता। . . . हुआ। इस समय कविके जामाता, पुत्रवधू तथा पौल. मुकुन्द भट्ट-१ जगन्नाथविजयके रचयिता। २ नलोदयके | का उल्लेख देख कर अनुमान होता है कि उनका जन्म 'टीकाकार । ३ पदचन्द्रिकाके प्रणेता । ' . १६वीं शताब्दी में हुआ था। कविकङ्कणके पिता हृदय मुकुन्द भट्ट गाडगिल-एक विख्यात नैयायिक, अनन्त | मिश्र 'गुणराज' उपाधिसे भूपित थे। कयिक परिचयके 'भट्टके पुल तथा मनोहर वीरेश्वरके छान। इन्होंने ईश्वर- अनुसार उनके ज्येष्ठ भ्राता' कवि चन्द्र (निधि राम) वाद तथा तर्कसंग्रहचन्द्रिका . नामक अन्नम भट्टकृत तथा कनिष्ठ रामानन्द होते हैं । भूलसे कविकङ्कण शब्दर्भ तर्क संग्रहको रोका और तामृत तरंगिणी नामक जग- कचिके दो पुत नथा दो कन्याओंका नाम असम्बन्ध भाय. दीश कृत तामृतकी टोका लिखी है।।...' में लिया गया था | अभी अनुसन्धान करनेसे पता चला