पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/७९६

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७०४ छोरी ही होती है। इसका रंग पीके जैसा होता है इसलिये रख छोड़नेसे जो मुक्ता तौलमें हठात् बढ़ जाती है. इस मुक्ताको सौराष्ट्र कहते हैं। प्रकाशयुक्त, सफेद, भारी उसीको सर्पसे उत्पन्न मुक्ता जानना चाहिये। यदि और मच्छे गुणों से युक्त मुक्का पारसव कहलाती है। नागज मुक्ता प्राप्त हो और मूल्य निश्चित किया जाय तो छोटी, मथे हुए दहीके रंगको, बड़ी तथा बेडौल मुक्ता हेम | राजाओंके विप और दारिद्वा दूर होते तथा शत्रुओंका नामसे प्रसिद्ध है। काले या सफेद रंगकी, येडौल, | विनाश होता है। इससे यश फैलता और सभी कार्यों में छोटी तथा तेजस्क मुक्ताको कौवेर कहते हैं। पाण्डा विजय प्राप्त होती है। . . . देशको मुक्ता नीमफे फल, लिपुट और धानके चूर्ण को ___ वेणुजात मुक्ता कपूर और स्फटिककी जैसी दीप्तिमान, । जैसी होती है। चिपटी और विषम होती है। शंखज मुक्ता चन्द्रमाकी ..

वैष्णव अथवा विष्णुदैवत मुक्ता अतसीफूलफी जैसी | जैसी दीप्तिमान् गोल और सुन्दर होती है।

श्यामवर्णकी, ऐन्द्र मुक्ता चन्द्रमाको जैसो, वारुण मुक्ता शंख, तिमि; घेणु, हाथी, सूमर, सांप और अवरफसे हरताल-सो चमकीली और यमदैवत मक्ता काले रंगकी उत्पन्न मुक्ताये बेधी जा सकती है। इन सब मुक्ताओं- होती है। वायुदैवत मुक्ता अनार, गुझा और तांयेकी! में अपरिमित गुण हैं, अतएव इनका कोई निश्चित जैसी पको रंगको तथा आग्नेयमुक्ता धूमरहित अग्नि और ) मूल्य नहीं हो सकता। ये मुक्ताये राजाओंके पुत्र, कमलकी जैसी चमकीली होती है। धन, सौभाग्य और यश देनेवाली, उनके रोग शोकको दूर रविवार और सोमयारको पुष्या और श्रयणा नक्षवमें फरनेवाली तथा मनोरथ पूर्ण करनेवाली मानी गई है। ऐरावत जातिके हाथियों का जन्म होता है तथा जो सव ___राजे महाराजे मुक्काकी माला गले में पहनते हैं। चार . हाथो उत्तरायणकाल में चन्द्र-सूर्यग्रहणके समय जन्म लेते हाथ लम्वी एक हजार आठ .मोतियोंकी गुथो माला । इन्द्रच्छन्द कहलाती है। यह देव लोगोंका भूपण है। उन हाथियों के दांतमें तथा कुम्भमें बड़ी-बड़ी मुक्ता होती है। यह मक्ता अनेक प्रकारके नाना संस्थानसम्पन्न और इसका आधा होनेसे उसे विजयच्छन्द कहते हैं । १०८ प्रमायुक्त होती है। इन सब हाथियोंको येचना या शिकार या ८१ मुक्ताओंकी मालाको देवच्छन्द, ·६४ मुक्ता. करना उचित नहीं। क्योंकि, ये बड़े प्रभायुफ्त तथा वालो मालाको अद्ध हार, ५४ को रश्मिकलाप, ३२ परम पवित्र होते हैं। ऐसे हाधीको पकड़नेसे राजाके को हारगुच्छ, २० को अईगुच्छ, · १६ को हारमानरक, १२ को अर्द्ध मानवक, ८ को हारमन्दिर, ५ को हार, पुत्र, विजय तथा स्वास्थ्यलाभ होते हैं। . और २७ मुक्ताओंको गुथो हुई एक हाथ लम्बी भूकरके दांतको जड़में चन्द्रमाकी कान्ति-सी और मालाको नक्षत्रमाला फहते हैं। मुक्तामाला अन्तर अनेक गुणोंसे युक्त वाराहमुक्ता होती है। तिमि मछलोसे मणि संयुक्त हो, . तो मणिसोपान कहलाती है।' मछलोको आंख जैसी चमकीलो बहुत गुणोंसे युक्त, सोने से . दानेदार और चञ्चलमध्यमणि संयुक्त पवित्र और बड़ी मुक्ता निकलती हैं, इसको तिमिज मुक्ता हो तो उसे चाटुकार कहते हैं । - यदि.. हार कहते हैं। मेघसे भी मुक्ता उत्पन्न होती है। सप्तम- में यथेष्ट मुक्ताये हो और उसमें मणि न रहे तथा यह वायुके कन्धसे गिरी हुई ओर दामिनी सदृश प्रभा- | एक हाथका हो, तो उसे पकावलो और यदि यह वाली ओलोंके समान जो मुक्ता होती है उसे मेघज मुक्ता मणिसंयुक हो, तो उसे यष्टि कहते हैं। कहते हैं। इस मुक्ताको देवगण हरण करते हैं; अतपत्र . .. ... (वृहत्संहिता ८१ अध्याय) पृथ्वी पर यह मुक्ता नहीं मिलती। गजमुक्काके बारेमें चाणकरने लिखा है, कि 'मौक्तिक तक्षक तथा वामुफिवंशमें उत्पन्न जो सब कामगामी | न गजे गजे' अर्थात् सभो हाथीमें मुक्ता नहीं रहती। सर्प हैं उनके फनके अप्रभाग पर नीला तिसम्पन्न स्निग्ध हाथीके मस्तकमें किस प्रकार मुक्ता उत्पन्न होती है इस मुक्ता उत्पन्न होती है। पवित्र स्थानमें चांदीके वरतनमें | विषयमें यों लिखा है- . . . . .