पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/७९७

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मुक्ता ७०५ "मतजा ये तु विशुदव'श्यास्ते मौक्तिकानां प्रभवाः प्रदेष्टाः। । मुक्तायें भी ब्राह्मणादि चार वर्णके सांपोंसे उत्पन्न उत्पद्यते मौक्तिकं तेषु वृत्त आपीतवर्ण प्रभया विहीनम् ।। होती है। 'वक्ष्ये गजपरीक्षायां गजजातिचतुर्विधा। ____ मीनज मुक्ता--मछलीविशेषके मुहमे एक प्रकारका मौक्तिकं तेषु जातं !इ चतुर्विधयुदीर्यते ॥ पत्थर होता है उमौको शास्त्रमें मत्स्यमुक्ता कहा गया ग्रामण्यं पीतशुलन्तु क्षत्रिय पीतरक्तकम् । है। पाठीन नामकी मछलीसे जो मुक्ता निकलती है पीतभ्यामन्तु वैश्यं स्यात् शूद्रं स्यात् पोतनीलकम् ॥ वह पाठीनको पोटके रंगको, गोल और छोटी होती है। काम्बोजकुम्भसम्भूतं धात्रीफलनिम गुरु। जिन मछलियोंसे मोनमुत्ता निकलतो हे चे समदफे बीच अतिपिञ्चरसच्छायां मौक्तिकं मन्ददीधितिः॥" रहा करती हैं। भिन्न भिन्न प्रकारको मछलियोंसे भिन्न (युक्तिकल्पतरू) मिन्न प्रकारको मुक्ता निकलती है। घायु, पित्त और 'जो हाथी पवित्र बंशी जन्म लेते हैं उन्हीं के मस्तकौ | फफ इन तीनों से दो दो या तोन तीन गुणवाली समी मुक्ता उत्पन्न होती है। इन हाथियों में से किसी किसोमें मछलियां सात प्रकृतिको होती है अतएव मुक्काके भी सुगोल, कुछ पीली और छायाविहोन मुक्ता होती है। सात भेद हुथा करते हैं। हाथी कई श्रेणीके होते हैं। इनमें उच्च घंशके हाथोके चार घातप्रधान मछलीसे छोटो और लाल रंगकी, पित्त भेद हैं, उन चारोंमें मक्ता पाई जाती है। अतपय इनसे प्रधानसे मृदु और कुछ पीले रंगकी और कफप्रधानले . उत्पन्न मुक्ता भो चार प्रकारको होती है। जैसे- बड़ी मोर उजले रंगकी मुक्ता निकलती है। वात और ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र । ब्राहाण जातिको मुक्ता | पित्त दोनों प्रथल रहे, तो मुत्ता फोमल और छोटो होता .पीली और शुलवर्णको; क्षत्रिय जातीय मुक्ता पीली और है। वात और कफ दोनोंकी अधिकता हो, तो लाल; वैश्य जातीय मुक्ता पीली और श्याम वर्णको तथा कुछ दड़ी तथा पित्त और कफकी अधिकता हो । शूद्रजातीय मुक्ता पोली और नील वर्णकी होती है। । तो मुक्ता अधिक स्वच्छ होती है। एक एक या दो दो कम्योजदेशमें हाथोके कुम्ममें जो मुक्ता होती है, प्रकृतिके जो सय लक्षण बतलाये गये हैं ये सबके सय उसका आकार ठीक गोल नहीं, परन् यांयले फलयो । अला परिमाणमें जिस मुक्तामें पाये जाय उसे सान्नि: जैसा होता है। यह तौलमें कुछ भारी, पिश्चरसकी पातिकज कहते है। इन सब मुक्ताओं में सान्निपातिकम होती है और इसमें छाया तथा कान्ति बहुत थोड़ी रहतो और एकज ( एक प्रकृतिको ) मुक्ता प्रशस्त और शुम- है। अग्निपुराणके मतसे गजमुक्ता सर्वोत्कृष्ट है। दायक होती है। "नागदन्तभवाश्चान या:" हाथी दांतसे उत्पन्न मुक्का याहमुक्ता~पहले कहा जा चुका है, कि शूकरसे भी एक हो सर्वश्रेष्ठ मुका है। प्रकारको मुक्का निकलती है । फिस जातिको भूगरसे मुक्का फरिणमुक्ता--सर्पसे उत्पन्न मुक्ता। जिन सांपोंके जन्म लेती है, उसके लक्षण क्या है, ये सय विषय शास्त्रमें मस्तक पर पत्थर रहता है वे अपने विपसे विभोर रहते इस प्रकार घतलाये गये हैं। सांपके फन पर, मछलीफे .हैं। जो सांप वासुकि या तक्षकके वंशमें जन्म लेते हैं। मस्तक पर और हापोंके दन्तकोषमें भिस प्रकार मुक्ता और अपने इच्छानुसार चल फिर सकते हैं उनके फनके , अगले भागमें स्निग्ध और नीलवर्णकी मुक्ता जन्म लेती * वातपित्तकपदन्दसनिपानममेदतः । है। यह देखने में अत्यन्त सुन्दर, गोल, नीलवर्णको सतप्रकृतयो मीने सप्तपा तेन कीतितम् ॥ . . और अत्यन्त दीप्तिमान होती है। बड़े भाग्यसे ऐमी मपिरमरण पातात् मारीतं मृदु पिच मुक्ता हाथ लगती है। शुमः गुरुकफोद्र कात् यातपित्तान्मुदुर्मः ॥ यह फणिजमुम शृगालकौल ( उन्नाव ) भावले गुञ्ज पालेभात्य वितरलेाजमन्चकम् । या येरको सो होलडीलमें होती है। ये चार प्रकारको सर्वनिकायोगेय सालियाविकयुज्यते ।" (गरुडपुगण)