पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/८००

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७०८ मुक्ता वह बड़ी कठिनाईसे मिलती है। यह मुक्ता चन्द्रमाको दश दोपोंमें प्रधान ४ और मध्यम ६ दोप है ! मुक्ता. . किरणके समान उजली, स्वच्छ और परिमाणमें जायफल- के ८ गुण ये हैं.-१ कुतार, २ सुवृत्त, ३ सच्छ, ४ के वरावर होती है। इसको कान्ति अत्यन्त उत्तम और निर्मल, ५ घन. ६ स्निग्ध, ७ सच्छाय और ८ अस्फुटित । देखने में बड़ो सुन्दर होती है। यड़े भाग्यसे ऐसी मुफ्ता गगनमें सुशोभित तारोंको जैसी धतिविशष्ट होनेसे उसे मिलती है। रत्ना पण्डितोंने मुफ्ताकी तरह शुफ्तिको सुतार कहते हैं। सुनार गुणवालो मुफ्ता बहुत कम भी ब्राह्मणादि चार श्रेणियों में विभक्त किया है, मिलती है । जो मुफ्ता चारों ओर एक समान गोल हो उसे "ब्रहादिजातिभेदेन शुक्तयोऽपि चतुर्विधाः । सुवृत्त और जो दश दोषोंसे रहित हो उसे स्वच्छ मल- तासु सर्वासु जातं हि मौक्तिक स्याचतुर्विधम् ॥ रहितको निर्मल और जो तौलमें भारी हो उसे धन कहते ब्राहाणस्तु सितः त्यच्छो गुरुः शुक्लः प्रभान्वितः । हैं। घन गुणयुक्त मुफ्ता सबसे श्रेष्ट होती है। जो मुफ्ता आरपतः क्षत्रियः स्थलस्तथारुण प्रभान्वितः ॥ स्नेह अर्थात् घो, तेल आदिकी जैसी दीख पड़ती है उसे धेश्यस्त्वापीतवर्णोऽपि स्निग्धः श्वेतः प्रभान्वितः । स्निग्ध कहने हैं। जिस मुफ्तामें किसी न किसी प्रकार- शूनः शुक्लवपुः सुक्ष्मस्तथा स्थलोऽसिता तिः ॥" | को कान्ति ( छाया ) रहे उसे सच्छाय कहते हैं। जिस (गरुडपुराण) जिस मुफ्तामें व्रण अर्थात् छिद्राकार चिह्न या किसी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूभेदसे शुफ्ति चार प्रकारको रेखा न रहे उस चिहरहित मुक्ताको अस्फु- प्रकारको होती है। अतएव उससे उत्पन्न मुफ्ता भी ब्राह्म | टित कहते हैं। यह मुक्ता चड़ी मूल्यवान् तथा दुर्लभ णादि भेदसे चार प्रकारको है । जो मुफ्ता श्वेत, निर्मल, होती है। भारी तथा शक प्रभायुक्त होती है वह ब्राह्मण-जातीय! अग्निपुराणमें रत्नपरीक्षा-प्रसंगमें मुफ्ताके चार गुण मुक्ता है। जो कुछ लाल, स्थूल और अरुणप्रभावाली है बतलाये गये हैं,-वृत्तत्व, शुक्लता, स्वच्छ और महत्त्व । इन वह क्षत्रिय जातिकी; कुछ पीली, स्निग्ध और शुभ्रप्रभा चार गुणों के आधार पर मुक्ताका मूल्य निर्धारित किया घालो वैश्य जातिको तथा जो मुक्ता स्थूल और काली है, | जाता है। वह शूद्र जातिके समझो जाती है। ____ इन गुणों के अतिरिक्त मुक्ताके भी कई महागुण हैं, उक्त सभी मुफ्ताओंके एक एक अधिष्ठात्री देवता उन सब गुणोंवाली मुक्ताको महारत्न कहते हैं। ये है, जिसके सम्बन्धमें पहले ही लिखा जा चुका है। गुण ये हैं,- भ्राजिष्णु-दीप्तिविशिष्ट, कोमल लावण्ययुक्त, इस प्रकार जाति और देवताका निर्णय कर शास्त्र कान्ति-कमनीय, इच्छोटे कारि-गुणविशिष्ट । फहनेका में मुफ्ताके दोप गुणका विचार किया गया है। तात्पर्य यह, फि देखते ही जिसे लेनेकी इच्छा हो जाय, मुफ्ताके साधारण दोप और गुण- मत्स्यपुराणमें | जो देखने में सुन्दर हो, और और गुणोंके साथ दीप्तियुक्त मुफ्ताके ८ गुण तथा १. दोप दिखाये गये हैं । हो अर्थात् प्रकाश देती हुई दोख पड़े तो ऐसो मुफ्ताको

  • "मुतारञ्च सुवृत्तञ्च स्वन्छञ्च निर्मलन्तथा ।

घनं स्निग्ध खच्छाय तथा स्फुटितमेवन। अष्टौ गुणाः समाख्याता मौक्तिकानामशेषतः॥ तद्यथा-- तारकाधु तिसङ्काश' मुतारमिति गद्यते । सर्वतो बतुलं यच्च मुवृत्तं तन्निगद्यते ।। पच्छ' दोपविनिमुक्तं निर्मलं मलवर्जितम् ।। गुरुत्वं तुलने यस्प तद्धनं मौक्तिक वरम् ॥ . स्नेहेनैव विलिप्त यत्तत् स्निग्धमिति गद्यते। , . . छाया समन्वितं यच सच्छा तन्निगद्यते॥ - प्रणरेखाविहीनं यत्तत् स्यादस्फुटितं शुभम् । भ्राजिञ्चु कोमलं कान्तं मनोज्ञ स्फुरतीव च ॥ सक्तीच सत्वानि तन्महारत्नसंज्ञितम् । . . श्वेतफाचसमाकारं श भ्रांश शतयोजितम्। शशिरा प्रतिन्छाय' मौक्तिक देवभूषणम् ॥". . (मत्स्यपुराण,