पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/८०१

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७० मुक्ता महारत्न कहते हैं। जो मुक्ता कांचको असी और चन्द्र। ४ अतिरक्त दोष-जो मुफ्ता प्रवालकी जैमो लाल किरणयुक्त हो यह देवभूपण है अर्थान् दुर्लभ है। । होती है उसको अतिरफ्त कहते हैं। इसको पहननेसे शुक्रनीतिमें लिखा है- दरिद्रता होती है। ये ही चार मुक्ताके प्रगन दोष हैं। "कृष्णा मितं पीतवर्ण द्विचतुः सप्तपञ्चकम् । ____५ विवृचदोप-जिस मुफ्नाफे पर तिरके सदृश त्रिपञ्चसतावरणमुत्तरोत्तमतमम् ॥ रेखा दीख पडती है उसे वित्त कहते हैं, इसको पहनने. कृष्ण सितं मात् स्तं पीत'तु जरठ विदुः। से सीमाग्यका क्षय होता है। कनिष्ठ मध्यम श्रेष्ठ क्रमात् शु क्त्यु द्भवं विदुः ।" चिोटदोष-जो मुफ्ता गोल न हो, उसको चिपोट अर्थात् विषटी कहते है। कृष्णवर्ण, शुभवर्ण, पीतवर्ण तथा २, ४, ७, गुजा भर और ७त्र यमदोष-लम्बी मुफ्ता रुम कहलाती है। यह ३, ५, ७ मावरणको मुक्ता में पिछली मुफ्ता उत्तम होती बुद्धिको नाग करती है। हैं। कृष्णवर्ण शक्तिकी मुफ्ता होन, भ्यतवर्णकी मध्यम 5 शायदोष-जिस मुक्ताका पक भाग मान या और रक्तवर्ण शुक्तिको मुफ्ता श्रेष्ठ समझी जातो है ।। भग्नप्राय हो अथवा डेढा या विषम हो. उसको राजपाळ पोत मुफ्ताको जरठ कहते हैं। जो मुफ्ता देखनेमें तारों / कहते हैं। यह मुफ्ता दूषित समझी जाती है। की जैसो अत्यन्त शुद्ध, स्निग्ध, स्थूल, निम्मल, प्रण- १० अवृत्तदोष-पीड़कायुक्त मुफ्ता महत्त कहलाती रहित तथा जो तौलमें भारी हो वह वहुमूल्य होती है। है। इसको धारण करनेसे सारी सम्पत्ति नए हो जाती __ पहले ही कहा जा चुका है कि, मुफ्ताके १० दोष हैं। ' है । अन्तके ६ मध्यम दोष हैं । इन्हें छोड़ मुयताके छोटे उनमेंसं ४ महादोप और ६ मध्यम हैं। जैसे--शुफ्ति , छोटे और भी अनेक दोष है । इन दोपोंसे युक्त मुफ्ताओं लग्न, मत्स्याक्ष, जठर या जरठ और अतिरिक्त ये चार । को धारण कर। उचित नहीं, लेकिन ये औषधि महादोष हैं। और वित्त, चिपोट, लात्र, कृश, यशपार्श्व, काममें आ सकती है। और अवृत्त ये ६ मध्यम दोष हैं । इन सव दोपोंके लक्षण वर्ण-स्फुरणको छाया कहते हैं। शास्त्रों मुफ्ताकी “निम्न लिखित है-- चार छाया वतलाई है --पीत, मधुर, शुत्र और मील । "चत्वारः स्युर्म हादोषाः यपमध्याश्च प्रकीर्तिताः । पीत छायावाली मुक्ता धन देनेवाली, मधुर युद्धि देने. एवं दश समाख्यातास्तेषां वक्ष्यामि लक्षणम् ॥ वाली, शुभ यश बढ़ानेवालो, और नीली सौभाग्य ने वालो मानी गई है। शक्तिलग्नच मत्स्यान जठरञ्चातिरक्तकम् । ___मुकावेधप्रणाली-मुक्ता अत्यन्त कठिन होता है त्रिवृत्तञ्च चिपीटञ्च प्रार्च फशकमेव च ।। अतएव इसको वैधना सुगम नहीं है। पहले कुछ विशेष कृरापार्श्वमवृत्तच मौक्तिक दोपवद्भवेत् ॥" विधिसे इसको कोमल बनाओ, तब इसमें छेद कर सकते (युश्विकल्पतरू) हो। मुक्ताको कोमल बनानेका तरीका यह है,-मीप. १ शुचिलग्नदोष-जिस मुफ्ताफे किसो मागमे । के पटसे मुक्कामों को निकाल कर बाली सोपोंमें यंद सीपका टुकड़ा लगा हो उसको शुफ्तिलग्न कहते हैं।' फर दा। फिर 'दार' नामक च्यका बरतन बना कर उमे इस मुफ्ताको धारण करनेस कुष्ठ रोग दूर होता है। , इसी बरतनमे रखो। अब यह परतन जय फटने पर था २ मत्स्यादादोप---किसो किसी मुक्तामें मछलीको । जाय, तव मुक्ता निकाल ला । अनन्तर इन्हें एक महीमा मांस जैसा एक प्रकारका चिह्न देखा जाता है उसीको धानको देरमें रम्य छोड़ा। बादमे सम्मफे साथ एक दूसरे मत्स्याक्ष कहते है । इम दोपसे दूषित मुपताको धारण वरतनमें जंबोरो निचूके रसके साथ पाक करो। इसके बाद करनेसे पुतनाश होता है। मदन गृक्षको जड़को टुकड़े टुकड़े कर उनसे मुफ्नामो ३जरठ या जठर दोप-जिस मुफ्तामें दोप्ति या छाया , फोधिसते जामा। ऐसा करने से मन मुतादिक इनमें · नहीं, उसे जरठ मुफ्ता कहते हैं। मुराख कर सको हो। relain. 178