पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/८४७

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मुजफ्फरगढ़ ७५७ • अतिरिक्त खेतीको सुविधाके लिये स्थानीय राजा बहुत-। और उसके लड़के मूलराजने शासनमें बहुत कुछ सुधार मो नहर खुदया गपे हैं। किया था। उसके बाद यहलपुरके नवाबों ने रणजित् इस जिलेमें १८ वन-विभाग हैं जिसका रकबा सिंहसे इसका कुछ अंश पट्टा लिया। लेकिन वहुत दिनों प्रायः ३ लाहा धोघा होगा। इस जिलेके यधिकांश तक उन लोगों ने राजकर नहीं दिया तब रणजित्सिंहने “स्थान भिन्न भिन्न प्रकारकी वनस्पतियों और वृक्षोंमे भेनटुरा नामक सेनापतिको उस प्रदेशको विजय करने भरे हुए हैं। यहां पाजूरको खेती बहुनायतसे होती है। मेजा १८४६ ई. तक मुजफ्फरगढ़में सिपख-शासन रहा। जिससे सरकारको यहा लाभ है। शीशमके पेड़ यहां। उसके बाद मुलतानको वगावतके समय १८४६ ई०में यह - सूज लगते हैं। सड़क के दोनों ओर कतारमें शीशमके ; अगरेजी राज्यमें मिला लिया गया। पेड़ लगाये जाते हैं। इसके अलावा झाड, कन्द, गिरीप, अगरेजी शासनमें पहले खांगर मुजफ्फरगढ़का झाल, करिता, पीपल आदि पक्षोंका भी अभाव नहीं है। प्रधान नगर हुआ । कई वर्ष तक लगातार वादसे इव उद्यानके वृक्षों में अनार, आम, आत, कमला नीबू तथा जानेके कारण सदर स्टेशन वहांसे उठा कर मुजफ्फरगढ़. थीर उल्लेखनीय है। में लाया गया। उपजाऊ जमीन होने के कारण व्यापा- • जगली जानवरो में बाघ और सूमर प्रधानतः सभी रिक उन्नति कर उक प्रदेशका यह मुख्य स्थान हो गया। स्थानों में पाये जाते हैं। इनके अतिरिक्त भेड़िया. चारों ओर बहुतसंख्यक नदी और नहर रहनेसे समाय, खरगोश, शृगाल, फरुमियारो, और छोटे छोटे खेतीकी यहां बडी मुविधा है। साढे ६ लाख यीघा हरिण भी यहुतायतसे पाये जाते हैं । पालतू पशुओं में जमीन नहरके जलसे आवाद होती है और ४ लाख गाय, मैंस, वकरा, भेडा, ऊंट और घोड़ा तथा पक्षियों में बीघा जमीन गोचर है । कई लारा योधा जमीन अभी इंस, गुला, कोयल, तीतर और अनेक प्रकारके जल- . भी परती है। वर्षाके पानीसे खेतीमें सहायता नहीं पक्षी ही प्रधान है। नरह तरहको स्यादिष्ट मछली . मिलती। अधिकांश स्थानमें नहरका समुचित प्रबन्ध सभी जगह मिलती है। . . . ' न रहने के कारण बड़ो क्षति होती है। . . इस जिलेका कोई स्वतन्त्र इतिहास नहीं हैं। जी और गेहं यहांकी प्रधान उपज है । शरदमें दाजरा 'मुलतानके साथ इसका इतिहास जुड़ा हुआ है । अकबर और मारीक इत्यादि भी ग्बूव होते हैं। उत्तर भागमें नील, के राज्यकाल में यह जिला मुलतान सरकार के अन्दर था। औरख लगती है। यहां श्रमजीवियों की संख्या बहुत जिस समय दुर्रानीवंशके शासकगण मुगलराज्यके अधः । ज्यादा है। खुरासान प्रदेशसे ये लोग यहां आते हैं। पतनके समय नया साम्राज्य स्थापित करने का असर ' इद रहे थे उस समय यह उन लोगों का प्रधान स्थान हो यहा व्यापारका यशप उन्नात नहीं देखा जाती। गया था। अफगानवंशीय मलतान अन्तिम शासक मज युगसनके पोविन्दा व्यापारो लोग प्रधानतः व्यापार पफर खांने अपने नाम पर इसका नाम रणग्या । उमी करते हैं । यहांकी रफ्तनीमें गेहू, गुड़, रुई और घी और समयसे इसका नाम मजपफरगढ़ चला आ रहा है। मज-. तथा आमदनी चीजोम लोहा, चून, नमक पफरमान इस नगरके चारों ओर दीवार खड़ी की थी। अनेक तरहकी विलायती चीजे ही प्रधान है । खैरपुर उस समय इस जिलेका अधिकांश बयलपुरके नवावक हो प्रधान वाणिज्यकेन्द्र है। चैलगाड़ी यहां अधिक अधीन था। सिक्खों थोर अफगान शासकों की लड़ा नहीं मिलती। ऊंट ही विशेष कर बोझ ढोते हैं। सभी पहांके छपक मुसलमानों का पक्ष ले कर बड़े क्षतिग्रस्त जगह नस्य, मोटे कपड़े, खजूर और चटाई आदिका हुए थे ! १८१८ ई में रणजित्की सेनाने इस पर चढ़ाई | व्यवसाय होता है। को और इसे अपने अधिकारमें कर लिया। तभोसे यह .. मुजफ्फरगढ़ जिलेमें खांगर, खैरपुर, अलिपुर, सहर सिपखों के शासनमें आया। सिक्ख सरदार सावमल । मुलतान, शीवपुर, जातोई, कोटमाद और देरादिनपना, Vol, XVII 190