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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार


समझा जाता है। बड़े लोगों के सामने अनुचित हँसी को रोकना बहुत आवश्यक है। जहाँ तक हो पुरुषों को कठिन से कठिन दुख में भी रोना अथवा बहुत विलाप करना उचित नहीं है । यद्यपि हदय का दुख कभी कभी बिना रोये शान्त नहीं होता, तथापि पुरुषों को अत्यन्त धैर्य धारण करना चाहिये। किसी किसी जाति में स्त्रियाँ अपने सम्बन्धियो से मिलने पर भेंट करती हुई जोर जोर से रोती हैं, पर ऐसा करना उचित नहीं। स्त्रियों को बाजार में या सड़क पर अपनी नातेदारिनों से भेंट करते समय कभी न रोना चाहिये।

कई लोग बहुधा धन, पदवी अथवा विद्या के अभिमान में हाथ जोड़कर किये गये प्रणाम का उत्तर केवल सिर हिलाकर या एक हाथ उठाकर देते हैं। ऐसा करना शिष्टाचार के विरुद्ध है । कोई- कोई लोग केवल मुख से ही प्रणाम का उत्तर दे दते हैं और हाथ से कुछ भी संकेत नहीं करते। कुछ लोग हाथ न जोड़कर केवल मुंँह से ही प्रणाम या नमस्कार कहते हैं। ऐसे लोगों को उन्हीं की रीति के अनुसार उत्तर देना अनुचित नहीं है। कुछ लोग ऐसे भी पाये जाते हैं जो अँगरेजो की नकल करके केवल एक अंगुली उठाकर प्रणाम का उत्तर देते हैं, ऐसा करना भी अशिष्टता है। कई लोग मुसलमानों को देखा-देखी आवश्यकता से अधिक भुककर और हाथ को कई बार माथे तक ले जाकर प्रणाम करते हैं। यह क्रिया हिन्दुस्थानी शिरावार की गम्भीरता के विरुद्ध और बनावटी समझी जाती है। ऊंँचे पदाधिकारियो से अवश्य ही उनकी मर्यादा के अनुसार नम्रता पूर्वक प्रणाम करना चाहिये । जब तक विशेष परिचय अथवा प्रेम-भाव न हो तब तक किसी से बहुत दूरी पर रहकर प्रणाम न किया जावे । जो लोग मूक प्रणाम करते हैं उन्हें उसी रीति से उत्तर देना आवश्यक है।