अंगरेजो में दूसरे लोगों के सामने डकार लेना परम घृणित समझा जाता है। यद्यपि हिन्दुस्थानी समाज में इस क्रिया को उतनी घृणा को दृष्टि से नही देखते तथापि इसे थोड़ा बहुत अशिष्ट अवश्य समझते हैं । स्ययं डकार बुरी वस्तु नहीं है और उससे डकार लेने वाले को स्वास्थ सम्धीबन्धी लाभ भी होता है, पर उससे जो दुर्गंध सी फेलती है यह दूसरो के लिए हानिकारक है। जॅमाई के समान डकार लेने में भी हाथ का उपयोग किया जा सकता है और उसमे दुर्गन्ध का निवारण हो सकता है। जो बात डकार के सम्बन्ध में कही गई है यही कुछ हेर फेर के साथ हिचकी के सम्बन्ध में भी कही जा सकती है।
खांसते समय मुंँह पर हाथ लगा लेना चाहिये जिससे पास बैठे हुए लोगो को किसी प्रकार असुविधा न हो । सभा-समाज में यदि खांसी कुछ उग्र-रूप धारण करे और साधारण से अधिक समय तक चले तो खांसने-वाले को वहां से उठ जाना चाहिये जिससे दुसरो के कार्य में विन्घन हो । खांसी बहुधा ऐसा रोग है कि किसी एक का खांसना सुनकर आसपास बैठे हुए लोग भी खांसने लगते हैं और इस सम्मिलित कोलाहल से दूसरे लोगो के काम- काज में अथवा सभा-समाजो के कार्य में बाधा आ जाती है, इस-लिये जिसे खांसी को कुछ भी शिकायत हो उसे ऐसे अवसर पर भुँजी हुई लोंगो का उपयोग करना चाहिये निससे खांसी कुछ शान्त हो जाती है।
इनके अतिरिक्त बुर स्वाभाविक क्रियाएँ ऐसी हैं जिनको सदैव
दुसरो की दूष्टि बचाकर करना चाहिये । इन क्रियाओ के पश्चात्
और दूसरो के समीप पाने अथवा उन्हें छूने के पूर्व, हाथ पॉव
और मुख की शुद्धि कर लेना परम आवश्यक है जिसमे दूसरे को
कोई ग्लानि न हो । यदि इनमें से कोई एक क्रिया मनुष्य की विर-