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छठा अध्याय


अवस्था में आर्थिक सहायता देना शिष्टता और नीति का कर्तव्य है। आवश्यकता पड़ने पर पड़ोसी को उचित सलाह देना चाहिये और उसके किसी भी गुप्त भेद को प्रगट करने अथवा जानने की इच्छा न करना चाहिए । यदि पड़ोसी की अोर से दो-एक बार साधारण अपराध हो जाय तो उन्हें क्षमा की दृष्टि से देखना चाहिये ।

जहाँ तक हो सके पड़ोसी से लडाई झगडा करने का अवसर न लाया जावे, क्योंकि पड़ोसी की शत्रुता सब अवस्थाओ में हानि-कारक होती है। कोई मनुष्य बार-बार शत्रु को देखने अथवा उसकी बातों का स्मरण करने से चित्त की शान्ति स्थिर नहीं रख सकता, इसलिये, पड़ोसी से बिगाड़ होने का अवसर सदैव टाल दिया जावे । यद्यपि दुष्ट का संग नरक के वास से भी बुरी कहा गया है, तथापि यह बात सम्भव है कि किसी के शिष्ट-व्यवहार से दुष्ट मनुष्य भी अपना व्यवहार सुधार सकता है। बहुधा दुष्ट मनुष्य भी अधिकाश में अपने पड़ोसी के साथ दुष्टता का व्यवहार नहीं करते । पड़ोसी की सहायता यहाँ तक लाभकारी होती है कि लोग बहुधा उसके भरोसे अपना घर द्वार और लड़के बच्चे छोड़ जाते हैं।

यदि पड़ोसी के यहाँ की स्त्रियों में पर्दे की चाल हो तो उनके मिलने पर पुरुषों को अपनी दृष्टि इस भाँति फेर लेना चाहिये जिसमे उन्हें कोई अड़चन न हो और अपने पर्दे का पालन करने के लिए अवसर मिल जाये। पड़ोसी के घर के भीतरी भाग में बिना आवश्यकता के अथवा बिना सूचना दिये जाना उचित नहीं। जब तक कोई आवश्यक कार्य न हो तब तक अपने घर के भीतरी भाग से अथवा ऊपरी कोठे से पडोसी को बुलाना अथवा उससे बात-चीत करना अशिष्टता का चिह्न है। स्त्रियाँ बहुधा इस नियम का उल्लघंन कर देती हैं, पर उनका यह कार्य नियम विरुद्ध ही है।