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पृष्ठ:हिन्दुस्थानी शिष्टाचार.djvu/१५८

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सातवां अध्याय

(१) विदेशी चाल-ढाल

जो जाति अधिक सभ्य अथवा प्रभावशाली समझी जाती है उसकी चाल-ढाल का अनुकरण बहुधा दूसरी जाति-वाले करने लगते हैं। यह अनुकरण विशेष करके पोशाक, केश-कलाप, श्रृंगार और रहन-सहन में देखा जाता है । इस दुर्गुण में बहुधा पुरुष ही नहीं, किन्तु स्त्रियां भी ग्रसित हो जाती हैं। प्राय देखा जाता है कि अधिकांश हिन्दुस्थानी लोग खुले सिर रहने लगे हैं । यह चाल बंगालियों से सीखी गई है, क्योकि ये लोग किसी समय अपनी विद्या और पद के कारण बहुत प्रतिष्ठित माने जाते थे । यद्यपि खुले सिर रहना बंगालियो में एक सामाजिक रीति है, यहाँ तक कि एक देहाती और गरीब बंगाली भी सिर खुला रखता है, तो भी हिन्दु-स्थानी लोगों में खुला सिर शोक का चिह्न समझा जाता है और साधारण रीति से लोग इन वनावटी बाबुओ को कुछ तिरस्कार की दृष्टि से देखते हैं । सेठो और मारवाड़ी लोगेा में तो खुला सिर रखना असभ्य और अशुभ माना जाता है। इसी प्रकार बहुधा यह भी देखा जाता है कि कोई-कोई हिदुस्थानी स्त्रियां महाराष्ट्र महिलाओं का अनुकरण कर उनकी तरह साड़ी पहिनने लगती हैं । ऐसी स्त्रियों को भी उनकी जाति-वाले एक प्रकार से असभ्य समझते हैं।

यदि कोई जाति की जाति विदेशी श्रेष्ठता अथवा शासन के प्रभाव में पड़कर विदेशी चाल-ढाल सीख ले तो उस अवस्था में देशी चाल-ढाल का पुनरुद्धार करना कठिन है, पर यदि किसी