शिष्टाचार के अधिकांश नियम शासन के नियमों में रहते हैं जिनका पालन आज्ञा की कठोरता के साथ कराया जाता है, तथापि ये ( पिछले ) नियम ऐसे नहीं हैं कि इनमें सदैव आज्ञा की ही आवश्यकता हो और इनका पालन दण्ड के भय से ही किया जाय। यदि विद्यार्थी ( और शिक्षक भी) शिष्टाचार के मूल सिद्धान्त पर विचार करे तो उन्हें ज्ञान हो जायगा कि कक्षा में शान्ति रखना और एक ही व्यक्ति का बोलना केवल आज्ञा और दण्ड के विषय नहीं हैं, कितु विवेक के भी हैं । कक्षा में जिस समय शिक्षक पाठ पढ़ा रहा हो उस समय बातचीत करना अथवा अनुमति के बिना प्रश्न करना अनुचित है। यदि किसी विद्यार्थी को कोई शंका उत्पन्न हो तो यह पाठ का एक खण्ड समाप्त होने पर अपना हाथ उठाकर शिक्षक का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करे और उसकी आज्ञा से अपनी शंका खड़े होकर प्रगट करे । केवल असामयिक बाद विवाद की दृष्टि से शंका उपस्थित करना अनुचित है। यदि शिक्षक किसी विद्यार्थी की शंका को साधारण या अनुचित समझकर उसका समाधान न करे तो विद्यार्थी शिक्षक के कार्य में अधिक विघ्न न डालकर किसी अन्य उपयुक्त अवसर पर अपनी शंका का समाधान करा लेवे । शिक्षक और शिष्य के बीच में सदैव नम्रता का व्यवहार होना चाहिए, पर यदि किसी समय शिक्षक की ओर से कोई अनुचित कठोरता हो जाय तो कम से कम शिष्टाचार के अनुरोध ही से विद्यार्थी को यह व्यवहार सहन कर लेना चाहिए।
विद्यार्थी बार बार कक्षा के बाहर न जावे । यदि विशेष आवश्यकता हो तो यह शिक्षक से अनुमति लेकर कुछ समय तक बाहर ही रहे । कार्य के समय बिना शिक्षक की अनुमति के बाहर से कक्षा के भीतर आना भी अशिष्टता है। पाठशाला में आने के और घर जाने के समय शासन के अनुसार विद्यार्थियों को पाठक से प्रणाम