करना चाहिए जिसका प्रेम-पूर्वक उत्तर देना पाठक का कर्तव्य है । पाठशाला के बाहर भेट होने पर भी प्रणाम और उत्तर के नियम में बाधा न आनी चाहिए।
जो बाते विद्यार्थियों के विषय में कही गई हैं वहां थोड़े-बहुत हेर-फेर के साथ शिक्षकों के विषय में भी कही जा सकती है । जहाँ तक हो सके शिक्षक को अपना पाठ पद्धति पूर्वक और खड़े रहकर पढ़ाना चाहिए । पाठक लोग कभी कभी कुरसी और मेज का सुभीता पाकर मेज पर पैर फैला देते हैं । यह अनुचित है । विद्यार्थियों के प्रश्न करने पर उन्हें उसका उत्तर शांति और प्रेम-पूर्वक देना चाहिए । शिक्षक को विद्यार्थियों के प्रति न तो पत्थर सा कड़ा और न मक्खन सा कोमल होना चाहिए, क्योकि दोनो ही अवस्थाओं में मृदु मति बालको पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। उसे मध्य भाव से अपना व्यवहार करना चाहिए ।
(२) भीड़-मेलों तथा रास्तों में
भीड़-मेलो में सेना के शासन के समान अथवा कल की एक- रूपता की तरह पूर्ण व्यवस्था होनी कठिन है, क्योकि सभी लोग सभी स्थानो में और सभी समय पर शिष्टाचार का विचार नहीं रख सकते । इसीलिए ऐसे अवसरों पर प्रबन्ध के लिए स्वयं सेवकों और पुलिस को अावश्यकता होता है । तथापि लोगो की सदिच्छा और विवेकबुद्धि से बहुत से अनुचित व्यवहार रोके जा सकते हैं।
भीड़ मेलो मे स्त्रियां और पुरुष बहुधा अपने साथियों के साथ
जाते हैं और जहाँ तक होता है प्रत्येक अपना साथ बनाये रखता
है। ऐसी अवस्था में लोगो का यह कर्तव्य है कि अपने साथ-
वालो का ध्यान रखें। यदि कहीं कोई साथी छूट जाय तो दूसरे
साथियों को उसे खोजना चाहिए अथवा उसके लिए ठहरना