पृष्ठ:हिन्दुस्थानी शिष्टाचार.djvu/३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२९
चौथा अध्याय


चाहिए । जहाँ सड़क चौड़ी हो यहाँ सड़क के किनारे से चलना ठीक है जिसमेंम सवारियों के आने जाने में कोई दुर्घटना होने का डर न रहे । झुंडवाले लोग एक कतार में न चलें, किन्तु एक दूसरे के आगे पीछे, और बीच रास्ते में खड़े न रह । प्राय ऐसे ही नियम सवारियों के लिए भी हैं। इनका वेग नियमित होना चाहिए और इन्हें आने-जाने वाले को सभ्यता पूर्बक सचेत कर देना चाहिए । पैदलो और सवारो को एक दूसरे के सुभीते का ध्यान अयश्य रहे। इसी भांति पुरुषों को स्त्रियों के तथा स्त्रियों को पुरुषों के सुभीते का ध्यान रखना चाहिए। जिस ओर में अधिकांश स्त्रियाँ जाती हो उस ओर मे पुरुष न जावें । इसी तरह त्रियाँ भी पुरषों के मार्ग से न चले । स्त्रियों के मार्ग को रोककर खड़े होना अथवा किसी पास के स्थान पर ठहरफर उनको ओर टकटकी लगाकर देखना, ठट्ठा करना या अनुचित गीत गाना नीचता है। यदि किसी मेले के स्थान पर स्त्रियों और पुरुषों के ठहरने, नहाने आदि के लिए अलग अलग स्थानों का प्रबन्ध हो तो प्रत्येक वर्ग को अपने ही निर्दिष्ट स्थान का उपयोग करना चाहिए । अधिक भीड़ होने पर भी स्त्रियों को हटाकर जाना पुरुषों के लिए उचित नहीं है । जिस धर्म के लोगो का मेला हो उनकी सम्मति बिना अन्य धर्मवाले को उसमे विशेष-कर पूजा के स्थान और समय पर सम्मिलित न होना चाहिए।

यदि भीड़ में कोई बालक, स्त्री अथवा अशक्त मनुष्य किसी प्रकार के संकट में हो तो बलवान् और धनी लोगो को अपनी योग्यता के अनुसार उसकी सहायता करना चाहिए । दर्शक-गण और भक्त जन भी मेलो और तमाशो में बहुधा स्वार्थ और मनोर- जन के लिये जाते हैं, इसलिए उन्हें असहायो को सहायता देने का बहुत कम ध्यान होता है। परतु यथार्थ उपकार करने का अवसर