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पृष्ठ:हिन्दुस्थानी शिष्टाचार.djvu/३८

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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार


ऐसे ही स्थानो में मिलता है। क्या ही अच्छा हो यदि कुछ उपकारी सज्जन मेलो में देवताओं और साधुओ के दर्शन करने के पश्चात्कु छ ऐसे असहाय लोगेा के भी दर्शन करें जिनका उस समय केवल ईश्वर ही रक्षक रहता है।

स्वयं-सेवको को भी अपने कर्तव्य का पूरा ध्यान रखना चाहिए । लोगो से सभ्यता पूर्वक बात चीत करना और आवश्य कता पड़ने पर उनको उचित सहायता करना प्रत्येक स्वय-सेवक का कर्त्तन्व होना चाहिए। किसी का पक्ष पात अथवा अपमान करना उनके लिए कलंक की बात है। स्वयं सेवक मन में यह धारणा न रखे कि मैं बिना वेतन के काम करता हूंँ, इसलिए मुझे सब के साथ मनमाना व्यवहार करने को स्वतंत्रता अथवा योग्यता है। उसे अपने नाम “स्वयं सेवक" के अर्थ पर सदैव दृष्टि रखना चाहिए।

इसी सम्बन्ध में दो-चार शब्द पुलिस के लिए भी कह देना अनुचित न होगा । यद्यपि पुलिस वाले अपने को विशेष अधिकारी समझने के कारण बहुधा शिष्टाचार का नाम तक नहीं जानते तथापि मनुष्यता की दृष्टि से वे अपने अधिकार के उपयोग में भी शिष्टाचार का पालन कर सकते हैं । हिन्दुस्थान का एक मामूली कानिस्टबिल भी कोई बात पूछने पर टर्राता है जिसका विशेष कारण अज्ञान और पराधीन प्रकृति है, पर विलायत की पुलिस के विषय में लिखा है कि वह नीच से नीच अभियुक्त के साथ भी अशिष्ट व्यवहार नहीं करती। पुलिस को सदैव इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि नम्रता-पूर्वक किये गये प्रश्न का उत्तर नम्रता ही के साथ दिया जाना चाहिए । उसे लोगो को कठिनाइयो को ओर उन्हें दूर करने के उपायों को खोज करनी चाहिए और जहाँ केवल उँगली उठाने से काम चल सकता है वहाँ लट्ठ न चलाना चाहिए ।