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पृष्ठ:हिन्दुस्थानी शिष्टाचार.djvu/३९

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चौथा अध्याय


आनन्द की बात है कि कुछ दिनों से कहा कहा पुलिस अपने को प्रजा का सेवक समझनेज् लगी है।

मेलो और तमाशो में कई लोग विशेष-कर गुंडे भाई उपद्रव करने ही की दृष्टि से जाते है । एसे लोगो से शिष्टाचार की आशा करना वृधा है पर ऐसे लोगो के अत्याचारो को रोकना प्रत्येक शक्तिशाली नागरिक ओर पुलिस का प्रधान कर्तव्य है । बहुधा तरुण शिक्षित लोग भी इन उपद्रवियों का अनुकरण करने लगते हैं ओर कुछ समय के लिए अपनी शिक्षा, अपने कुल और अपने कर्त्तव्य को भूल जाते हैं। जिस देश में ऐसे नीच लोग होते हैं उसकी प्रतिष्ठा को ये दुष्ट सहज ही में खो देते हैं ।

( ३ ) मन्दिरों में

ऊपर जो कुछ मेलो के विषय में कहा गया है उसका अधिकांश मन्दिरो में पाले जाने-वाले शिष्टाचार के सम्बन्ध में भी कहा जा सकता है। कई लोग मन्दिरों में भक्ति के कारण नहीं, किन्तु लोक-लज्जा के वशी-भूत होकर जाते हैं। ऐसे लोगो को भी पूजा स्थान में प्रचलित शिष्टाचार का पालन करना चाहिए । आते जाते समय पुजारी को प्रणाम करना ओर उससे एक-दो बात कर लेना शिष्टता के चिह्न हे। देव-दर्शन के समय ऐसे स्थान में खड़े होना या बैठना चाहिए जिसमें पीछे वाले व्यक्ति का दृष्टि पथ न रुके । प्रार्थना इतने जोर से न की जाये कि दूसरे को किसी प्रकार की असुविधा हो। पूजा करने में इतना अधिक समय न लगाया जाय जिससे दूसरो को पूजा का अवसर न मिले । यदि पुजा के लिए स्त्रियाँ भी आई हो तो उन्हें इस काम के लिए पहले अवसर देना चाहिए । प्रार्थना और पूजा के आगे पीछे तुरंत ही संसारी काम-काज की बातें न छेड़नी चाहिए । जो मनुष्य किसी देवता के ध्यान में मग्न हो अथवा किसी