(५) उत्सवों में
उत्सव दो प्रकार के होते हैं-(१) घर-सम्बन्धी (२) जाति-सम्बन्धी। पुत्र-जन्म, विवाह आदि पहले प्रकार के उत्सव हैं और दशहरा, फाग, रामनवमी आदि दूसरे प्रकार के हैं। पहले प्रकार के उत्सवों में गृही का प्रथम कर्त्तव्य यह है कि वह पाहुनो के निवास, भोजन आदि का उचित प्रबन्ध करने में कोई बात उठा न रक्खे। इधर पाहुनो का भी यह कर्त्तव्य है कि वे घर-वाले के ऊपर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यर्थ दबाव न डालें। घरू उत्सवों मे जिस अाग्रह से निमंत्रण दिया जाय उसी के अनुसार उसका पालन किया जाना चाहिए। यदि निमंत्रण केवल शिष्टाचार की दृष्टि से दिया गया है तो उसका पालन भी उसी दृष्टि से किया जावे। ऐसी अवस्था में केवल उत्सव-सम्बन्धी व्यवहार ही भेज देने की आवश्यकता है, उसमे पाहुना बनकर सम्मिलित होने की आवश्यकता नहीं है। इस विषय में कोई कोई गृह-स्वामी यहाँ तक चालाकी करते हैं कि व्यवहारियों को बहुत पीछे निमंत्रण देते हैं जिसमे वे उत्सव में सम्मिलित न हो सकें और साथ ही यह भी न कह सकें कि हमे निमंत्रण नहीं मिला। इस प्रकार के निमंत्रण को कोई मान नहीं दिया जा सकता। हां, शिष्टाचार की दृष्टि से लोग उसका यही उत्तर दे सकते हैं कि किसी अड़चन के कारण हम उत्सव में शामिल नहीं हो सकते।
विवाह के उत्सव में बहुधा बीच वालों के कारण समधियों में अनबन हो जाती है। कभी कभी तो यथार्थ अथवा कल्पित मानरक्षा के प्रयत्न में पूर्वेक्ति दोनो सज्जनो की भूलों ही से बखेडे़ खड़े हो जाते हैं और इनके कारण पाहुनो को व्यर्थ ही शारीरिक और मानसिक कष्ट उठाना पड़ता है। उन्हें बहुधा समय पर भोजन नहीं