पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/१०२

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पथरकलों के धुंए से वह बाबरो गये, पीछेचाले कहते थे आगे बढ़ो और आगेवाले चिल्लाते थे कि पीछे हटो। उन्हें यह भी जान पड़ा कि तुर्क कहाँ है और कितने हैं। पठान सिपाही इतने थे कि उन्हें आगे बढ़ने की जगह न मिली और तुर्क उनके चारों ओर थे उनकी समझ में यह भी न आया कि किधर बढ़ना चाहिये और वह भाग खड़े हुए। १७ दोपहर होते होते लड़ाई समार हो गई। इजारो पठान खेत में बिछ गये और उनके बीच में उनका बादशाह इब्राहीम लोदी भी पड़ा हुया था। बाबर इस लड़ाई के वर्णन में लिखता है कि यों ही ईशवर की दया से यह बड़ी लेना आवे ही दिन में धूर में मिल गई।

१८-उसी दिन बाबर ने हुमायूं के साथ कुछ सवार

भेज दिये कि वह आगरे के किले और खजाने को हाथ में कर ले और कुछ सिपाही दिल्ली को भेज दिये कि किले पर अपना खरडा खड़ा कर दें। आगरे में हुमायूं ने ऐसा प्रबंध किया कि किसी राजा या सरदार को कोई दुःख न दिया जाय और न उनका धन छिना जाय। बावर लिखता है कि एक सरदार ने आप से आप हुमायूं को एक हीरा दिया जो आलाउद्दीन दक्षिण से लाया था। लोग कहते है कि इसका इतना दाम था जिस से आधे दिन तक संसार भर खाना खा सके।