पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/१६४

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सेना को मार भगाया और महरठो के बल का जो मुग़लों के पीछे भारत के राजा हो जाते सत्यानाश कर डाला। वह तीसरी लड़ाई सन् १७६१ ई० में हुई थी।

५-औरङ्गजेब के मरने के पीछे महरठों का बल बढ़ता

गया। शिवाजी के पीछे जो राजा हुए वह उस के बराबर वीर और पराक्रमी न थे। कुछ काल के पीछे उस के बड़े मन्त्रियों से जो ब्राह्मण थे अपने हाथ में राजा का सारा अधिकार ले लिया और आप राजा बन बैठे। इन मन्त्रियों ने पेशवा अर्थात् नेता की पदमी ली। जब एक पेशवा मर जाता तो उसका लड़का उस पद को पाता था।

६-पेशवा लोग पूना में राज करते थे। इन के सिवा

चार और महरठे सेनापति थे, जो कुछ दिनों पीछे राजा हो गये और जिन्हों ने राज्य स्थापित किये। वह सेंधिया, होलकर, गायकवाड़ और भोंसला के नाम से प्रसिद्ध हुए।

७-औरङ्गजेब के मरने के बीस बरस पीछे दूसरे पेशवा

बाजी़राव ने देखा कि मुगल बादशाही बहुत ही बलहीन हो गई है और उस ने समझ लिया कि जैसे हजार बरस पहले विक्रमादित्य ने शकों को निकाल दिया था वैसे ही अब महरठे मुसलमान बादशाही को न भ्रष्ट कर सकते हैं। वह कहता था “मुसलमान बादशाहत पुराने पेड़ के सूखे तने इस की जड़ में कुल्हाड़ी मारो डालियाँ काटने का काम नहीं। डालियाँ आप से आप गिर पड़ेंगी"। उस का