पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/२०६

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(१६८) पौडे बङ्गाल में अगरेज़ सब से प्रबल हो गये थे। उन्होंने मीरज़ाकर की आह उस के दामाद मीर कासिम को नवाब बना दिया और उसने तीन चार बरस तक देश में राज किया। उस के पीछे उस्ले यह सूझी कि अङ्गरेजों से लड़ कर उन्हें देश से निकाल दें। मुग़ल बादशाह शाह आलम और अवध के नवाब शुजाउद्दौला भी उस से मिल गये। इसी के कुछ दिन पहले सन् १७६१ ई० में पानीपत की लड़ाई हुई थी। शुजाउद्दौला ने महरठों के परास्त करने में अहमद शाह की सहायता को थी और समझने लगा था कि हम अङ्गरेजों से भी लड़ सकते हैं पर बक्सर की लड़ाई में तीनों हार गये। ६-इसके पीछे लार्ड क्लाइव फिर बङ्गाल का गवरनर होकर आ गया। वह इलाहाबाद चला गया जहाँ शाह आलम और शुजाउद्दौला दोनों अङ्ग्रेजी लश्कर में बैठे थे और कहते थे कि हम से जो कहो वह करने को तैयार है दोनों परास्त हो चुके थे। क्लाइव चाहता तो दोनों का सारा राज ले लेता। ऐसा ही और मुग़ल बादशाह भी करते थे। पर इसके बदले उस ने एक सन्धि की जो इलाहाबाद का सुलहनामा कहलाता है। चित्र में चन्दवे के नीचे मुग़ल बादशाह बैठा है। उसके सामने लाड क्लाइव नंगे सिर खड़ा है। शाह मालम अब भी अपने को हिन्दुस्थान का शाहनशाह समझता था और उसी का आदर करने के लिये लार्ड क्लाइव ने अपनी टोपी उतार ली थी।