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अधीन मान कर सब के नाम न्योता भेजा कि सब लोग आकर मेरे घर की टहल करें। पृथ्वीराज को द्वारपाल बनने की आज्ञा दी गई।

८—इसी अवसर पर जयचन्द ने अपनी बेटी संयुक्ता का श्वयंवर भी ठान लिया। यह क्षत्रियों की पुरानी रीति थी जिस में सब राजा लोग बुलाए जाते थे और उनमें से राजकुमारी अपना वर आप चुन लेती थी जैसे सीता ने राम को वरा था। संयुक्ता परम सुन्दरी राजकुमारी थी और उस समय के भाट और कदि लोग उसकी सुन्दरता बखानते फिरते थे। पृथ्वीराज की सभा में चन्द कवि रहता था उसने उस से संयुक्ता का वर्णन इस रीति से किया है, "वह लम्बी और परम सुन्दरी है। उसके रूप में मोहनी भरी है उसके केश काले नीले हैं और उसकी आँखें उजले कमल पर भौंरों की भाँति मंडराती है।"

६—पृथ्वीराज संयुक्ता को चाहता था और वह भी उस पर आसक्त थी। दोनों एक दूसरे के नातेदार थे पर दोनों ने कभी एक दूसरे को न देखा था। पृथ्वीराज की एक पुरानी दाई थी, जिसने उसे बचपन में खेलाया था। उससे उसने अपना मन का भाव कह दिया। राजकुमारी का बाप उसका कट्ठर बैरी था, ऐसे अवसर पर उसे कोई चाल न सूझती थी। बुढ़िया ने उसको चाल सुझा दी। यह बुढ़िया अपने लड़कपन में कनौज की रानी की लौंड़ी थी।