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दिनों तक बाहर रहना पड़ेगा इस लिये दिल्ली में शासन के लिये किसी को सिंहासन पर बैठा देना चाहिये। रज़िया से बढ़ कर उसे कोई योग्य न जंचा और उसी को सिंहासन पर चठाना अलतमश ने निश्चय किया पर उसके सरदार न चाहते थे कि स्त्री कैली ही योग्य क्यों न हो उसके शासन में रहें। उन्हों ने कहा, "आप अपने किसी बेटे को सिंहासन पर बैठा दीजिये।" पर उसने सब को बुलाया और कहा कि "हमारे मित्रो, राज का भार हमारे लड़कों से न उठेगा यह सब विषय भोग के चाहनेवाले हैं। इनमें सन्देश नहीं कि हमारी बेटी जिया स्त्री है पर उसमें पुरुषों के गुण हैं और वह बीस लड़कों से अच्छा है।"

६—अलतमश छ: बरस बाहर रहा और इस समय में रज़िया ने बड़ी चतुराई और सावधानी से राजकाज किया। वह नित्य ईश्वर से यह मांगा करती थी कि, "मुझे बुद्धि और बल दे और मुझे अच्छा काम करने में प्रवृत्त कर।" उसने देश का शासन पेसा अच्छा किया और वह ऐसी योग्य और धार्मिक थी कि उसके भाई शाहजादे भी यह कहते थे कि हमारे पिता ने बहुत अच्छा किया जो हमारी बहिन को बादशाह बनाया। जब उसका बाप लौटा तो उसने राज उसे सौंप दिया और फिर घर में प्यारी और आज्ञाकारिणी बेटी बनकर रहने लगी।

७—चार बरस पीछे अलतमश मुलतान को जा रहा था