झमेले में डाल दिया था, परन्त धीरज और बुद्धिमानी के साथ उन्होंने उस दुर्घटना का सामना करके उले परास्त किया।
एक दिन दो व्यक्तियों के साथ अकेले में बैठे हुए नरेन्द्र सिंह राजकाज संबधी किसी गूढ़ विषय पर विचार कर रहे थे और उन तीनों के अलावे वहां पर उस समय कोई चौथा न था। उन दो व्यक्तियों में एक तो उनके योग्य मन्त्री माधवसिंह थे और दूसरे दिनाजपुर के राजकुमार कुमार मदनमोहन।
ये तीनों व्यक्ति किसी विषय पर कुछ तर्क बितर्क कर रहे थे कि इतने ही मैं चोबदार ने आकर पांच पत्र नरेन्द्र सिंह के सामने रख दिए और फिर वहांसे वह चला गया। पहिले नरेन्द्रसिह ने एक एक करके उन लिफ़ाफ़ों को देखा और फिर उनमें से पहिले एक पत्र को खोल कर पढ़ा और फिर उसे अपने मंत्री के हाथ में दिया। सबके पीछे मदनमोहन ने भी उसे बांचा। वह पत्र 'इष्ट-इण्डिया कम्पनी' के गवर्नरजनरल लार्ड क्लाइव साहब का लिखा हुआ था। पाठकों के मन बहलाव के लिए हम उसकी नकल हिन्दी में नीचे लिख देते हैं;-
"प्रिय मित्र महाराज नरेन्द्र सिंह!
"आपका कृपापत्र पाया, समाचार जाना।
“यह जान कर, कि आपकी पूजनीया माता का परलोकबास हुआ और आपके पूज्य पिताजी राज्य को त्याग कर काशीवासी हुए, चित्त को बड़ा खेद हुआ; किन्तु यदि मुझे सन्तोष है तो इस बात से है कि बूढ़े महाराज ने राज्य का भार अपने सुयोग्य पुत्र (आप) के हाथ में दिया है।
“दुराचारी सिराजुद्दौला के अत्याचारों का हाल मुझे भली भांति मालूम है और आप निश्चय जानिए वह दुष्ट अपनी करतूतों का नतीजा बहुत जल्द पावेगा। आप जानते ही हैं कि उसके कई दर्बारी मेरी और आमिले हैं, जिनसे इस बात का पूरा निश्चय किया जा सकता है कि बहुत जल्द सिराजुद्दौला को तन से उतार कर उसकी जगह उसके सेनापति मीरजाफ़रखां को सूबेदार बनाऊं।
"आपने अपने पत्र में जो कुछ लिखा है, उस पर हमारी कौन्सिल ने अपनी बहुत अच्छी सम्मति प्रगट की है और उसके अनुसार कार्रवाइयां भी की जाने लगी हैं। अन्त में जब कि