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(सातवां
हृदयहारिणी ।



न थम्हां। बीरेन्द्र ने उनका आँसू पोंछ दिया और यों कहना आरम्भ किया,-

" मां! नब्बाब सिराजुद्दौला, मेरे प्राण का गाहक बन बैठा है! यदि उसका दांव लगे तो वह मुझे कच्चा ही खा जाय! अस्तु, मैं कई कारणों से--या आपसे खुलासाही क्यों न कह दूं-कि 'इष्ट-इण्डिया कम्पनी' के लाट साहब का गुप्तचर होकर-मैं यहां भेस बदलकर रहा करता और नब्बाब के अत्याचारों का समाचार लाट साहब के पास भेजा करता था। उन्हीं दिनों मैंने बाज़ार में फूलों की माला बेचती हुई कुसुम को देखा था और यहां आकर आपके दर्शन किए थे। यद्यपि मैं यहां पर बहुत ही गुप्त रीति से रहता था, पर एक मेरे मित्ररूपी शत्रु ने, जिसका हाल मुझे अब मालूम होगया है, और उस पतित को उसकी करनी का फल भी भरपूर देदिया गया है, मेरे यहां रहने का हाल नब्बाब से कह दिया, जिसे सुनकर उसने मानों चांद का टुकड़ा मुट्ठी में पा लिया और मुझे फंसाने या मार डालने का षड़यन्त्र रचने लगा; किन्तु मां! आपके चरणों के आशीर्वाद से, मैंने यह खबर मुसलमान कुलभूषण महात्मा मीरजाफ़रखां से पाई और वह एक ऐसा मौका था कि जिसने मुझे यहां पल भर भी ठहरने का मौका न दिया और बिना आपके दर्शन किए ही मुझे यहांसे चले जाने के लिये लाचार किया। निदान, मैं आपकी सेवा का भार अपने उसी मित्ररूपी शत्रु पर देकर, जिसने कि मेरे यहां रहने का हाल नब्बाब से कहा था और जिस हाल को मैंने पीछे से जाना था जैसा कि मैं अभी कह चुका हूं, मैं यहांसे चला गया। आखिर, उस कृतघ्न विश्वासघातो को पूरा पूरा दण्ड तो नारायण देगें, पर हां , इतना मैंने अवश्य उसके लिये दण्डविधान कर दिया है कि जो उसे मिट्टी में मिलाने के लिये काफ़ी होगा और जिसका हाल वह चाण्डाल तब जानेगा, जब मैं ही उसे यह बात जनाऊंगा कि,-रे,रे चाण्डाल! तुझे तेरी कृतघ्नता, विश्वासघात और मित्रद्रोह का, यह इनाम दिया गया!!!

"इसके अलावे मैं अपने दुर्भाग्य की कहानी कहां तक कहूं! यहांसे जाकर घर में भी मुझे सुख न मिला, क्योंकि इधर तो जबाब मुझ पर दिन दिन अत्याचार करने लग गया और उधर