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श्रीहरिः

हृदयहारिणी

वा

आदर्श रमणी.



उपन्यास



पहिला परिच्छेद.

पथ में परिचय।

"स रक्षिता रक्षति यो हि गर्भे"।

आज इस बात को सौ डेढ़ सौ बरस से भी अधिक हुए होंगे, जिस समय मुर्शिदाबाद पूरी उन्नति पर था और वहांके रहनेवाले भी एक प्रकार से अच्छी अवस्थाही में थे; किन्तु यह बात सभी कोई जानते हैं कि सदा सब का समय एकसा नहीं बीतता। जो आज ऊंचा है, कल वह नीचा होगा; जो कल नीचा था, आज वह ऊंचा हुआ; संसार की रीति हो ऐसी है, इसमें न कभी उलट फेर हुआ और न कभी होगा। यही कारण है कि आज दुराचारी सिराजुद्दौला का प्रतापसूर्य्य अस्तप्राय और अंग्रेजों की सहायता से मीरजाफ़र ख़ां का उदय हो रहा था, इसीसे राज के उलट फेर होने से देश की जैसी दुर्दशा होनी चाहिए, मुर्शिदाबाद की भी वैसी ही दशा थी और सुहावना नगर पिशाच की छाया पड़ने से मानों भयानक बन सा प्रतीत होता था; अर्थात् जिस मुर्शिदाबाद की उन्नत अवस्था