और वहांके रहनेवालों की अच्छी दशा का हाल हम ऊपर लिख आए हैं, सिराजुद्दौला के राज्य के समय उस नगर और वहांके रहने वालों की पूरी दुर्दशा भी हो गई थी।
एक दिन तीसरे पहर के समय मुर्शिदाबाद के राजमार्ग में बड़ी भीड इकट्ठी हुई थी, जिसका कारण यह था कि उस दिन नव्वाब सिराजुद्दौला ने एक 'अजीब तमाशा' होने की मुनादी कराई थी, इसीलिये नब्बाबी महल के सामनेवाले मैदान में बड़ी खिलकत इकट्ठी हुई थी; पर यह बात अभी तक किसीको भी नहीं मालूम हुई थी कि, 'वह कौनसा अजीब तमाशा है, जिसके लिये नव्वाब साहब ने मुनादी फेरी है।'
उसी समय उसी मार्ग से होती हुई एक परमसुन्दरी बालिका पैर उठाती हुई जल्दी जल्दी एक ओर को जा रही थी, उसके आंचल के कोने में कुछ बंधा हुआ था, जिसकी पोटली उसने बगल में दबाली थी और उसकी एक मुट्ठी में कागज में लपेटी हुई कोई वस्तु थी। उस बालिका के मुखड़े से सीधापन, पहिनावे से दरिद्रता, रूपरंग से उत्तम कुल की महिमा और चाल से घबराहट टपकी पड़ती थी। उसने नीले रंग की देसी साडी से भली भांति अपना शरीर ढंक लिया था और उस पर से एक मैली चादर ओढ़ ली थी। इतना होने पर भी उसकी अलौकिक सुन्दरता उसी भांति देखने वालों की आंखों में चकाचौंधी लाने के लिये काफ़ी थी, जैसे काले मेघों की ओट में छिपा हुआ पूनों का चांद रह रह कर बादल से बाहर निकल लोगों की आंखें चौंधिया देता है।
निदान, उसी भीड़ में से होती, अपने तई दुराचारियों से बचाती और कतराती हुई वह बालिका एक ओर को जा रही थी। इतने ही में एकाएक भीड़ में खलबली पड़गई और बड़ा हल्ला मचा। लोग एक दूसरों पर गिरने, ठेला ठेली करने, भागने आपस में धकाधुक्की और गाली गलौज करने लगे। उस भीड़ के उस झमेले में बिचारी बालिका भी पड़ गई थी, सो वह कई बार सड़क पर गिरी और किसी किसी भांति संभल कर उठी; पर इस गिरा पड़ी में उसके आंचल की पोटली, जो उसकी बगल में दबी हुई थी, फट कर बिखर गई और उसमें बंधा हुआ 'धान का लावा' गिर कर तितर बितर हो गया। इतने पर भी उस बालिका ने अपनी