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परिच्छेद)
८७
आदर्शरमणी।


नरेन्द्र,-"प्यारी! सुनो तो सही, तुम-जैसी नारीरत्न के लिये जो कुछ किया जाय, थोड़ा होगा। प्रिये! सुगंधित कुसुम सिर चढ़ाने के योग्य होता है, न कि वह अनादर के साथ पैरों से ठुकराया जाय!"

कुसुम,-"सचमुच आज मैं धन्य हुई! भला, तो इन टोपियों का अब क्या किया जायगा!!!"

नरेन्द्र,-"जो तुम कहो?"

कुसुम,-"जैसा तुम्हें रुचे, सो करो।

नरेन्द्र -“मेरी तो इच्छा यह है कि ये टोपियां आज मेरे राज्य के मंत्री आदि प्रधान प्रधान कर्मचारियों को इसलिये बांटी जायं कि वे विवाह के उत्सव पर इन्हें पहिरें और फिर बराबरं वे लोग इसी टोपी को पहिर कर दरबार के समय राजसभा में आया करें। फिर जब जिनकी टोपी मैली होजायगी, उन्हें इन टोपियों में से नई टोपी दो जायगी; और मैं भी आज से इन्हीं टोपियों में की टोपी पहिरकर राजसभा में बैठा करूंगा।"

इस बात का उत्तर कुसुम ने तो कुछ भी न दिया, किन्तु उस की कृतज्ञ आंखों ने मोतियों का उपहार देकर अवश्य देदिया!

आखिर, टोपियां बांटी गई और सन्न राजकर्मचारियों ने बड़े आदर के साथ उसे पहिरा। उन टोपियों में इतनी विशेषता अवश्य को गई थी कि मन्त्री आदि जितने प्रधान-प्रधान कर्मचारियों को जो टोपियां दी गई थीं, उन टोपियों में पदाधिकारी को पद-मर्यादा के अनुसार मूल्यवान रत्न टांक दिए गए थे और वहुमूल्य हीरा नरेन्द्र ने अपनी टोपी में लगवाया था।