पृष्ठ:हृदय की परख.djvu/११९

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सोलहवाँ परिच्छेद

बात को कहोगे? जिस बात से कोई लाभ नहीं, उसे बार-बार कहने से क्या है? जो होना था, सो हो चुका।" यह कहकर शारदा सरला को बुलाने चली गई।

सरला की आँखों में न आँसू थे, न नींद; पर उनमें विषाद का हलाहल अवश्य भरा था। शारदा को देखते ही वह बैठी रह गई, और एकटक उसकी ओर निहारने लगी। क्षण-भर शारदा मी निश्चल रही। फिर उसने धीरे-धीरे आगे बढ़कर सरला का सिर अपनी गोद में छिपा लिया। आँसू उसकी आँखों में भी नहीं थे, पर उनका धुआँ हृदय के घोट रहा था। अंत में एक लंबी श्वास के साथ वह निकल गया। शारदा ने सरला को ज़ोर से छाती से लगा लिया। कुछ ठहरकर शारदा ने प्यार से कहा―"बेटा सरला!" सरना ने धीरे से सिर उठाकर शारदा के मुँह की ओर देखा। शारदा बोली―"जो होना था, सो हो गया। अब इस उदासी में क्या है बेटा?" यह कहकर शारदा पलँग पर बैठ गई। सरला अब भी उसकी गोद में थी। उसने अत्यंत करुणा से कहा―"मेरे भाग्य में जार-पुत्री होने का कलंफ लिखा था। जन्म से अब तक माता का सुख नहीं मिला। अपनी मा से एक बार मा भी न कह पाई, और पिता का तो कुछ पता ही नहीं। वह कौन हैं, कहाँ है, और है भी, या नहीं।"

शारदा की आँखें फिर भर आईं। अपने उमड़ते हुए