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हृदय की परख

शारदा व्यग्रता से सरला का हाथ पकड़कर कहा― "क्यों सरला, अब तू मुझे मा नहीं कहती?"

सरला ने आँसू भरकर कहा―"मेरी मा तो मर गई।"

"और मैं?"

सरला ने तनिक शंकित होकर कहा―"आपने भी मा की ही तरह कृपा की है।"

"केवल कृपा, सरला?"

सरला ने काँपती हुई आवाज़ से कहा―"प्यार भी।"

शारदा के नेत्रों का प्रकाश बुझ गया। उसने अत्यंत करुणा से कहा―"सरला बेटी, मैंने जो मा की तरह तुझे प्यार किया है, और तूने जो मुझे मा समम रक्खा है, यह झूठ बात नहीं है। मेरा भी तुम पर अधिकार है। असल में तो तू मेरी ही संतति है। तेरे पिता यह बात जानते हैं।"

सरला यह सुनकर अकचकाकर बोली―"आप यह क्या कहती हैं। क्या यह भी कोई रहस्य है? मेरे पिता जानते हैं, पर वह कौन और कहाँ हैं, यही कौन जानता है?"

"वह कौन हैं, यह बात जाननेवाले भी हैं।"

"कौन? जल्द बताइए।" सरला एकदम उठ खड़ी हुई। शारदा ने शांत स्वर से कहा―"एक तो मैं ही हूँ।"

सरला का मुँह सूख गया। उसकी जीभ तालू से सट गई। हड़बड़ाकर उसने कहा―"आप मेरे पिता को जानती हैं?"

शारदा ने वैसी ही शांति से कहा―"हाँ।"