पृष्ठ:हृदय की परख.djvu/१४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अठारहवाँ परिच्छेद १४७ मिलती थी। ये भीषण शब्द और ज्वलंत नेत्र तथा सफेद मुख देखकर शारदा घबरा उठी। उसने सोचा, इस समय यह अत्यंत उत्तेजित हो रही है, अतएव इसे सुला देना चाहिए। वह बोली-“यही बात है ? इसमें क्या है ? अच्छा, चल सो रह, पाछे देखा जायगा।" सरला चुपचाप उठ खड़ी हुई, और उसने कहा-"चलो।" यह बात उसने ऐसी उदंडता से कही कि शारदा दहल उठी। वह शंकित हृदय से उसका हाथ पकड़कर उसे ले चली, और खाट पर लिटाकर, जल्दी से जाकर कुछ खाने को ले आई। सरला विना कहे ही खाने बैठ गई, और थोड़ी ही देर में सब चाट गई । इस बीच में न शारदा कुछ बोली, न सरला । सरला फिर लेट गई। यद्यपि वह चुपचाप पड़ी थी, पर शारदा ने ध्यान से देखा, उसका मुख भीषण और नेत्र विस्फुटित होते जा रहे हैं। शारदा ध्यान से यही देख रही थी, और सरला भी चुपचाप उसको ओर देख रही थी। एकाएक उसकी दृष्टि कमरे में रक्खे हुए एक खिलौने के ऊपर ठहर गई। कुछ क्षण तो वह उसे देख. कर अस्फुट स्वर से कुछ कहती रही, फिर एकाएक प्रचंड वेग से उस पर टूट पड़ी, और उसे उठाकर उसने धरती पर पटक दिया। खिलौना चूर-चूर हो गया। शारदा की प्रथम तो डर से चीख निकल गई। फिर उसने सरला को पकड़कर पलँग पर डाल दिया। सरला अब भी कुछ अस्फुट बक रही थी।