१६ हृदय की परख फंसे रहते हैं, वैसा ही इस कन्या को देखकर लोगों ने समझा कि वः कन्या इसकी ऐसी ही लड़की है ; पा उस शिशु के स्नेह से उसने इस बदनामी की चोट को खुशी से सह लिया । कन्या धीरे धीरे खड़ी होकर खेलने लगी। लोग्नाथ के पास दो-चार मास में भिन्न-भिन्न स्थानों से मनीऑडर आ जाया करते थे। उन पा लिखा रहता था- 'सरता के लिये ।' सबने उसका नाम सरला ही रकवा । सरला सच मुच सरला ही थी । उसका रूप ऐसा दिय था कि उसे देखने को सभ' अकन रहते थे। सरला थी ता बालक, पर न जाने उसने कैनी रुचि पाई थी। उसका स्वभार बड़ा विल जण था किसी से बात करने और खेनन की अपेक्षा उस जाल में चुपचाप किसी क ज में बैठे हना अधिक अच्छा लगता थ । वर बहुधा या तो तरह- तरह के फूलों को मालाएं बनाया करतो था, ा वठा-बैठो पक्षियों क' वाली ऐसे ध्यान से सुना करती थो, माना व उसे सीख रही हो। बूढ़ लोकनाथ का वह अपना बाप समझती थो, और ऐमा प्यार करती थी, जैसा विग्लो हो संतान करती है। बूडा लोकनाथ ज व उस छोटे-से नए गुनाव से बात करता, तो परम सुम्ब पाता । सग्ला जब बात करती, ता उसके हिलते होठ ऐसे मालूम होते, मानो झ कावायु से प्रेरित होकर गुलाब की पंखड़ियां हिल रही हों। उसका बोनी भौंरे की
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