25 - हृदय की परख अभी तक उसे मारने, धमकाने या मलामत देने का एक भी अवसर नहीं आया। गाँव से उत्तर-पूर्व की ओर एक विशाल पीपल का पेड़ था। उसी ओर लोकनाथ का घर और खेत थे। उस पीपल के वृक्ष के नीचे किसी महात्मा की समाधि थी, और उसी में एक छोटा-सा पुस्तकालय था। जो पुस्तकें वहाँ रक्खी थीं, कहते हैं, वे सब उसी महापुरुप ने लिखी थीं। वे सब पुरानी लिपि में लिखी थीं। लोकनाथ न सरला को कुछ अक्षराभ्यास कराया था। वह स्वयं कुछ ऐसा पढ़ा-लिखा नहीं था, पर पढ़ना उसे अच्छा अवश्य लगता था। सरला अधिकांश में वहीं बैठकर उन पुस्तकों को पढ़ने की चेष्टा करती थी। क्या जाने कैसा उसका मस्तिष्क था ! उसने अक्षर-अक्षर जोड़कर निरंतर अभ्यास से कुछ ऐसा अभ्यास कर लिया कि वह उस प्राचीन लिपि को अच्छी तरह पढ़ने और समझने लगी। दिन दिन उसको वह पुस्तक पढ़ने की रुचि बढ़ने लगी। धीरे-धीरे उसका जंगल में घूमना, कुज में बैठकर फल गूंथना और पक्षियों की चहचहाहट को ध्यान से सुनना प्रायः छूट ही सा गया । अव उसका अवकाश का सारा समय उस अधेरी गुफा में या उसी पीपल के वृक्ष के नीचे पुस्तक पढ़ने में लगता था। जब दोपहर में भोजन के बाद सारे गाँव में सन्नाटा छा जाता, लोग विश्राम करने लगते, तब सरला वहीं बैठो-बैठी पुगने ग्रंथों के पत्रे उलटा-पलटा करता थी । लोकनाथ जब खेत
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