दूसरा परिच्छेद से घर लौटकर पुकारता-"बेटी!", तो देखता, द्वार बाहर से बंद है, बेटी वहाँ नहीं है। तब वह वहीं गुफा में जाकर देखता, उसकी बेटी स्थिर भाव से किसो पत्रे पर नजर डाल रही है ।लोकनाथ मधुर तिरस्कार से कहता-"यह क्या पागल- पन है सरला! खाना-पीना कुछ नहीं, जब देखो तभी काग़जों में आँखें गड़ाए है-इन कागजों में क्या रक्खा है ?" सरला सरलता से उठ खड़ी होती, और बूढ़े की उँगली पकड़कर कहती-"काहे काका ! भोजन तो बनाकर रख आई थी, तुमने अभी नहीं खाया ?" "कहाँ ? तू तो यहाँ बैठी है !" फिर घर आकर दोनो भोजन करते । गाँव के लोग न जाने क्यों, कुछ सरला से डरते-से थे। उसकी दृष्टि कुछ ऐसी थी कि सरता से न कोई आँख ही मिला सकता था, और न किसी को उसका अपमान या तिस्रकार करने का ही साहस होता था । उसको दृष्टि में कुछ ऐसा प्रभाव था कि वह जिससे बात करती, वह दवा-सा जाना था, क्योकि उच्य में कोई मायन स सेने किन किससे? मातेर के पतन माया के अपने में ले म 302 अयोनिकयुग का राज का कपडा बह उनापरी ४१-२ 1
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