२२ हृदय की परख . लगा। उसे प्रत्यक्ष बोध होने लगा कि सरला कहने को तो मेरे पास ही है, पर उसका हृदय एक ऐसे देश में विहार कर रहा है, जो आशातीत है। युवक सरला को चाहने लगा था। उधर बूढ़े की भी लालसा थी कि यदि इन दोनों का विवाह हो जाय, तो अपनी सारी धरती इनके नाम कर दूं, जिससे सुख-चैन से इनके दिन कटें। पर यह बात बड़ी ही कठिन थी। युवक भी इस बात को अच्छी तरह समझ गया था, तिस पर भी उसने यही ठान ली थी कि जो सरला का व्याह मुझसे न हुआ, तो यों ही कुँआरा रहकर जीवन व्यतीत करूँगा। लोकनाथ बहुत ही बूढ़ा हो गया था। एक दिन वह खाट पर गिर ही गया । उपचार तो बहुतेरे किए गए, पर लाभ कुछ भी न हुआ । सबने जान लिया कि अब उसकी अंतिम घड़ी ही निकट है। सरला का उसके प्रति प्रगाढ़ प्रेम था। वह अपनी सदा की संगिनी पुस्तकों को छोड़कर, हरे-हरे खेतों के कुजों को भूलकर बूढ़े की खाट के पास बैठी रहती। एक दिन बढ़े ने सरला से कहा-"बेटी, अब मेरे जीवन के दीपक का तेल चुक गया है । अब उसके बुझने में देर नहीं है। तनिक मेरे पास सरक आओ, तुम्हें एक भेद की बात बता जाऊँ ।" सरला का जी न-जाने क्यों कुछ दहल-सा गया। उसने कहा-"बाबा, रहने भी दो, अभी अच्छे हो जाओगे।"
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