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पृष्ठ:हृदय की परख.djvu/३१

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तीसरा परिच्छेद

इतने ही में सत्यत्रत भी आ गया । बूढ़े ने स्नेह-दृष्टि से उस-की ओर देखकर कहा- "बेटा सत्य ! तेरे ही हाथ में सरला को छोड़े जाता हूँ। जैसे बने, उसे सुखी करने में कुछ उठा न रखना। तुम दोनो विशेष प्रकार से न भी मिल सको, तो भी परस्पर सहानुभूति से रहना बेटा । मेरी यही आंतरिक इच्छा है। इसे सुनकर मैं सुख से मरूँगा।" दोनो ने रोते-रोते बूढ़े के चरण छूकर कहा-"बाबा ! जैसे होगा, हम आपकी आज्ञा का पालन करेंगे।" बूढ़े ने दोनो का सिर छूकर आशीर्वाद दिया। उसी रात को बूढ़ा चल बसा।