पृष्ठ:हृदय की परख.djvu/५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५२
हृदय की परख

भर आई हैं। उन्हें ऐसा मालूम होने लगा, मानो यह मानुषी नहीं, कोई देव-कन्या है। न-जाने क्यों उनकी ऐसी इच्छा हुई कि इसे प्रणाम करना चाहिए। इतने ही में सरला ने उन्हें देखकर कहा-"मान्यवर! आपको धन्यवाद देने को जी होता है।"उसे आत्मविस्मृति-सी हो रही थी। उससे आगे कुछ भी कहते न बना। गाड़ी बराबर चल रही थी। प्रयाग आ पहुँचा,दोनो उतर पड़े।