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हृदय की परख

स्वागत करते बना,न इससे प्रणाम। क्या जाने किस अतक्र्य शक्ति ने कैसी चुवन-शक्ति उत्पन्न कर दी। पलक मारते ही दोनो के हृदय मिल गए, भुजाएँ गुंथ गईं । न उनमें चेष्टा है न गति। बाबू सुदरलाल अभी बैठक में असबाब ही रख रहे थे। अब वह बहन को सरला का परिचय देने के लिये जो भीतर आए,तो क्या देखते है कि वे दोनो पवित्र पुष्प परस्पर गुंथकर अपूर्व शोभा बढ़ा रहे हैं। परिचय देने से प्रथम ही, दो ही चार मिनट में,वे दोनो आत्माएँ ऐसी मिल गई',मानो कितने युगों से दोनो को दोनो की प्यास थी!

कुछ देर स्तब्ध रहकर सुंदरलाल बाबू बोले-"बहन !इन देवी को क्या तुम प्रथम से ही जानती हो?"

दोनो की निद्रा भंग हो गई। दोनो ने नेत्र उठाकर उनकी ओर देखा, और तनिक कुठिन-सी होकर दोनो अलग-अलग हो गई।

सुंदर बाबू ने देखा, दोनो के नेत्र में एक अतृप्त अनुराग रँग गया है। वह अपने प्रश्न के उत्तर के लिये बहन को देखने लगे।

शारदादेवी बोली-"नहीं भाई ! इन्हें कहाँ देखा है, सो कुछ याद नहीं,पर ऐसा मालूम होता है कि हम इन्हें पहचानती हैं। सचमुच कभी इन्हें देखा नहीं, पर इस समय मेरा जी जैसा कुछ होता है,वैसा कभी नहीं हुआ था। मुझसे खड़ा