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पृष्ठ:हृदय की परख.djvu/५८

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हृदय की परख

बीच ही में शारदा बोलीं-"तुम मेरे हृदय की दुलारी बन-कर रहो। हमों तुम्हारी सेवा करके सफल होंगे। इस जन्म में तुम्हें देखा हो,सो तो याद नहीं, किसी और ही जन्म का संबंध है।"

सरना ने अत्यंत स्नेह से कहा-आप किसो जन्म की मेरी माॅं तो नहीं हैं ?"

"मेरा ऐसा सौभाग्य!ऐसी स्वर्गीया देवी की माता बनना क्या साधारण बात है ?"यह कहकर शारदा तनिक मुस्करा दी।

सरला ने देवा.उस मुस्किराहट में कुछ भी मिठास नहीं है। उसके बाद ही शारदा ने कहा-'अच्छा, कपड़े बदलकर हाथ-मुह धो डालो, फिर कुछ जल-पान करना ।"

सुंदर बाबू कमरे से बाहर नहीं गए थे। वह दीवार पर लगे हुए एक चित्र को बड़े ध्यान से देख रहे थे। शारदा को भी उधर नज़र उठ गई । उन्होंने भी चित्र पर दृष्टि डालो । न-जाने किस स्मृति का उदय हो आया। एक बार वह सुन्न हो गई। इसी समय सुंदर ने उनकी ओर मुंह फेरकर कहा-"कैसे अचरज की बात है बहन ! देखो,भूदेव के समान ही सरला को आकृति है। और उसके नेत्र तो मानो वही हैं।" शारदा के पसीना आ गया। इस बात को सुनते ही उसके हृदय में एक ऐसा ज्वार आया कि उनका सिर चकराने लगा। उनसे खड़ा न रहा गया। उन्होंने दीवार थाम ली।