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पृष्ठ:हृदय की परख.djvu/६४

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हृदय की परख

का रहस्य क्या जानो! अच्छा, पसंद न हो, तो मुझे दे दो।" बालक नाराज़ हो गया।

शारदा का ध्यान भंग हो गया। देखा, चाँदनी छिटक रही है। सामने शीतलपाटी पर सरला पड़ी सो रही है। शारदा से न रहा गया। उन्होंने वायु से माथे पर लहराते हुए सरला के बाल हटाकर उसका गोरा-गोरा माथा चूम लिया!

सरला हड़बड़ाकर उठ बैठी। कुछ क्षण में शांत होकर सरला ने कहा―मा! मेरे पास कौन था?"

"मैं थी बेटी!"

"किंतु मा! मैंन एक विचित्र स्वप्न देखा है। मैं तो डर गई।"

"स्वप्न? कैसा स्वप्न?" शारदा से आग्रह से पूछा।

"मा, वही दिव्य पुरुष, जिनका चित्र हमारे घर में टँग रहा है, आए हैं। उनके नेत्र तो वैसे ही हैं, पर उनके सारे बाल सफेद हो रहे हैं। उन्होंने प्रथम तो मेरे शरीर पर हाथ फेरा, पीछे कहा―'सरला! तू कैसी है? कब से तुझे देखने को फिर रहा हूँ। चल, मेरे साथ चल।' ऐसा कहकर उन्होंने मेरा माथा चूम लिया। मैं तो डर गई मा! तभी मेरी आँख खुल गई।"

इतना कहकर सरला भयभीत दृष्टि से शारदा की ओर निहारने लगी। शारदा ने उसके दोनो हाथ पकड़ लिए, और कहा―"इसमें क्या है? अभी हम उन्हीं की बात