पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१०३

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यह सुनकर अजीमुल्ला कुछ समय तक रुसमें रहा। अंग्रेज इतिहासकारोंको पूरा सदेह है, कि अजीमुल्लाका वहाँ जाना इसी उदेशसे होगा कि इग्लैड-के विरुध्द एशियामें रुस कहीं मोर्चा लेता है या नही? और इसकी सम्भावना हो तो रुसके साथ आक्रमक तथा सरक्षक संधि की जाय!राष्ट्रीय उत्यानके नगाड़े अब बजने लगे तब और उसके बाद लोग प्रकट-रुपसे बोलने लगे, कि रुसी जार और रुसी सैना फिरगियोसे युध्द करने कि सोच रहे है। इस बातके प्रकाशमें उपयुक्त सदेहकी और पुष्टि होती है। अजीमुल्ला अब रुसमें था तब लंदन टाइम्सका अगी सवाददातां तथा सुप्रसिध्द लेखक श्रि,रसेलके साथ उसकी बातचीत हुई थी। बेचारे रसेल को इसका खयाल तक न था कि रुस-तुर्की युध्द्की समाप्ति के बाद थोड़ेही दिनोमें उसे अपने अतिथिके आश्रर्यकारी युध्द-प्रयत्नोके सवाद भारतसे भेजने की बारी आयगी। अंग्रेजोकी हार का संवाद पाते ही १८ जूनको अंग्रेज तथा फ्रांसके सयुक्त सेना-विभागोंको रुसने बहुत हानि पहुँचाकर भगा दिया। इस सवांदको पातेही अजीमुल्ला अंग्रेजी शिबिरमें किसी तरह घुस गया। उसका वेश भारतीय तथा राजसी ठाठंका था। श्री रसेलसे मिलते ही अजीमुल्लाने कहा"जिन छुपेरुस्तुमोंने (रुसी सिपाहियोने) अंग्रेज-फ्रेचकी संयुक्त हरावलको सी भगाया, उन वीरोको तथा उनकी राजधानीको एक बार देख आनी की इच्छा होती है। अजीमुल्ला किसीको बनाने तथा व्यंग करनेमें सिध्द-ह्स्त था। जिन रुसी वीरोंने अग्रेज और फ्रान्सी सियोंके छक्के छुड़ाये थे उन्हें देखनेकी अजीमुल्लाकी इच्छाको पूरी करनेके लिए रसेलने उसे उसके खेमेमें आनेको कहा। शामके झठ-मुटे तक वह आग उगलती रुसी तोपोकों बड़े कुतूहलसे देखता रहा। उन तोपोंसे उड़ा एक गोला उसके निकट आ धमकनेपर भी वह वहाँसे न हटा। रातको खेमेमें लौटनेपर आनदसे भरे अजीमुल्लाने रसेलसे कहा, "उपयुक्त जानकारी सुविख्यात'रसेलकी दैनदिनी(रसेलस डायरी)पुस्तकसे दी है। १८५७ युध्द्में लंदन- टाईम्सके संववादाता की हैसीयतसे वह भारतमें आया था। उसकी लिखी बहुतेरी घटनाएँ उसकी 'आँखो देखी' है।