पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/११२

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ज्वालामुखी] ८० [प्रथम खड। ... P NPar किस तरह निकाल बाहर कर दिया गया आदि दिल दहलानेवाले अत्याचारोंके चित्र इतनी करुणापूर्ण रीतिसे सिपाहियोंके सामने चितारे जाते कि सैनिकों की ऑखोंसे ऑसू बहने लगते। और फिर उसी जोशमे गगाका पानी हाथमे लेकर या कुरानपर हाथ रखकर सौगंध लेते कि " दममे 'दम हो तब तक अंग्रेजी शासनको कुचलना यही हमारा ध्येय रहेगा" इस तरह सूबेदार मेजर, सूवेदार जमादार ये अफसर भी जब शपथबद्ध होते थे, तब सारी कंपनी उनके पीछे अपने आप, उसी ध्येय की हो जाती। इस तरह अवधके वजीरने अलग अलग तरकीबोंसे बंगालकी सारी सेना अपने वशमें कर ली [बंगाली पलटनसे मतलब है अवध, आगरा आदि स्थानोंके निवासी पूरबिये, मुसलमान और हिंदुओं की वनी सेना] कलकत्ते के फोर्ट विलियम में भी अली नकी खॉ के दूत क्रांतिका सदेश गुप्तरूपसें फैला रहे थे। __ भिन्न भिन्न शासकों तथा नरेशो के पास ब्रह्मावर्तसे पत्र भेजने 'पर नानासाहब ने जनता की भीतरी शक्ति को जगाने में अपना बल लगाया था। विठूर, दिल्ली, लखनऊ, सातारा और अन्य प्रमुख नरेगों के क्रातियुद्ध में शामिल हो जाने से पैसे की कमी क्योंकर रहेगी ? जनतामें जिन्हे कुछ विशेष स्थान हो ऐसे लोगोंको अपनी ओर कर लेनेके कामपर फकीरों, पडितों तथा संन्यासियोंको ताबडतोड भेजा गया था। यह कहना, कि ये सभी फकीर, सचमुच फकीर ही थे, साहस होगा। क्यों कि, कुछ फकीर तो अमीरी ठाठमे घूमते थे। उनकी यात्रा हाथीपर होती थी। सिरसे पैरतक शस्त्रोंसे सधे

  • (सं. १३) बारकपुरके सैनिकों के पत्रही अंग्रेजोंके हाथ पडे थे ! 'के' ने उन्हीको उद्धृत किया है। " सहायक तोपचीने कहा कि पूरी रेजिमेट अवधके नवाब साहबके पक्षमे जानेको सिद्ध है। सूबेदार मदारखॉ, सरदार खॉ, ओर राम शाहीलालने कहा 'विश्वासघात करनेमें 'वेटीचोद' 'फिरंगी अपना सानी नहीं रखते अवध के नवाबसाहब ने 'गद्दी छोड दी तो उन्हें पेन्शन तक न दिया।" ऐसे कई पत्र बादमें अंग्रेजों के हाथ लगे के कृत इडियन म्यूटिनी प्रथम खण्ड पृ. ४२९.