पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१२४

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ज्वालामुखी ९२ .. [प्रथम खड मिन्न चक्रोंकी गति एक ही लयमें चलती रहे। इसी उद्देशसे बगालमें एक क्रांतिदूत हाथमे लाल कमल लेकर सनिक शिबिरमें चुपचाप घुस पडा। उसने वह लाल कमल एक कपनीके सूबेदार मेजरके हाथमें थाम दिया, उसने अपने सहायकको दिया और इस तरह वह रक्तकमल हर सिपाहीके हाथसे गुजरा.और अंतिम सिपाहीने इसे कातिदूतको लौटा दिया। बस, काम हो गया। एक शब्द भी बिना बोले यह क्रातिदूत- तीरके वेगसे निकल जाता और भागमे दूसरी क्पनीके हिंदी मुख्य अधिकारीके पास दे देता। इस तरह काव्यमय बना यह रहस्यपूर्ण क्रातिसगठन एकमात्र रक्तमय विचारसे भर जाता। मानो, यह रक्तकमल क्रातिकी अतिम राजमुद्रा ही थी। इसकी कल्पनातक नहीं की जा सकती कि इस रक्तकमलको छतेही सैनिकोंके मनम किन भावोंका बवडर पैदा होता था। सचमुच, किसी उच्च श्रेणीक वक्ता भी अपनी अमोघ वक्तृतासें जिस वीरभावको जगानेमें असफल होंगे उस वीरभावका सचार इन लडाकु सैनिकोंमें उस. निर्वाक रक्तकमलने अपनी लालिमाकी वक्तृतासे कराया। * कमलपुग्प ! शुचिता, यम एव प्रकाशका कवियोंसे माना हुआ काव्यमय प्रतीक ! और उसका रंग ? रक्तोवल ! इस पुष्पके केवल स्पर्श ही से हृदयपुष्प विकसित हो उठता है। मैकडो सैनिकोंके हाथों जब यह कमलपुष्प एक दूसरेके हाथमे पहुँचाया गया होगा, तब इस पुष्पके मूक संदेश में बहुत गहरा, गूढ अर्थ तथा महान् साधनाकी स्फूर्ति निःसदेह सूचित की जाती होगी ! इस रक्तकमलने, सचमुच सबके अंत:करणोंको साधा। क्यो कि गालके सिपाही और किसान एक ही बात बोलते थे“मत्र कुछ लाल हो जायगा!" और यह कहते समय उनकी ऑखें ऐसी चमकती जिससे तुरन्त निश्चय हो जाता कि बहुत गहरा अर्थ भरा होगा । “ सब कुछ लाल हो जायगा"--किन्तु किमके हाथों १ + ___* (स. १७) नॅरेटिव्ह ऑफ म्यूटिनी पृ. ४ (माथ इस पुस्तकम उस विख्यात रक्तकमल पुष्पका चित्र भी मुद्रित है) + ट्रेव्हेलियन कृत 'कानपुर'